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Q. 1 जंगम सम्पत्ति से आप क्या समझते हैं ?
A.
धारा 22 के अनुसार – जंगम संपत्ति इन शब्दों से यह आशयित है कि इनके अन्तर्गत हर विवरण की मूर्त संपत्ती आती है,
किन्तु भूमि और वे चीजें, जो पृथ्वी से जुडी(भूबद्ध) हों या पृथ्वी (भूबद्ध) के किसी चीज से स्थायी रुप से जकडी हुई हों, इनके अन्तर्गत नहीं आती ।
Q. 2 “सदोष अभिलाभ” “सदोष हानि” क्या है ?
A.
➡️ सदोष अभिलाभ
धारा 23 के अनुसार- सदोष अभिलाभ विधि विरुद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति का अभिलाभ है जिसका वैध रूप से हकदार अभिलाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति न हो ।
➡️ सदोष हानि
विधि विरूद्ध साधनों द्वारा ऐसी सम्पत्ति की हानि है , जिसका वैध रूप से हकदार हानि उठाने वाला व्यक्ति हो ( धारा 23 )
Q. 3 लोक सेवक ‘ किसे कहते हैं ? क्या विधायक अथवा नगर पार्षद ‘ लोक सेवक ‘ की श्रेणी में आते हैं ?
A. वह व्यक्ति जो सरकार को अपनी सेवाएं देकर वेतन ले या लोक कर्तव्य के पालन के लिये उससे कमीशन , मेहनताना या फीस आदि के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त करें ।
माननीय उच्चतम न्यायालय के न्याय – निर्णयों के अनुसार , ये दोनों ही नहीं कहे जा सकते है ।
(धारा 21)
Q. 4 धारा 34 के अंतर्गत संयुक्त दायित्व के सिद्धान्त के आवश्यक तत्व बताइये ?
Ans.
( 1 ) एक आपराधिक कार्य ,
( 2 ) आपराधिक कार्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया हो ,
( 3 ) सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने के लिए किया गया हो ,
( 4 ) ऐसे व्यक्तियों के बीच सामान्य आशय पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार हो , में
( 5 ) अपराध में सभी अभियुक्त किसी न किसी रूप में सम्मिलित हो ।
Q. 5 धारा 34 एवं धारा 149 में सर्वप्रमुख दो अंतर बताइये ?
( 1 ) धारा 34 में कार्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा सामान्य आशय को अग्रसर करने हेतु किया जाता है , जबकि धारा 149 में पाँच या अधिक व्यक्तियों द्वारा सामान्य उद्देश्यों को
( 2 ) धारा 34 संयुक्त दायित्व के सिद्धान्त को प्रतिपादित करती है , परन्तु कोई विशिष्ट अपराध का सृजन नहीं करती है , जब कि धारा 149 संयुक्त दायित्व के सिद्धान्त की घोषणा करते हुए विशिष्ट अपराध का सृजन करती है
Q. 6 क्षति शब्द को स्पष्ट कीजिए ? क्षति के आवश्यक अवयव कौन से हैं ?
A. धारा 44 के अनुसार क्षति शब्द किसी प्रकार की अपहानि का द्योतक है , जो किसी व्यक्ति के शरीर , मन , ख्याति या सम्पत्ति को अवैध रूप से कारित हुआ हो ।
( i ) किसी व्यक्ति को कोई अपहानि कारित करना ,
( ii ) ऐसे अपहानि अवैध रूप से कारित करना
( iii ) ऐसी अपहानि शरीर , मन , ख्याति या सम्पत्ति से सम्बन्धित हो ( धारा 44 )
Q. 7 एक व्यक्ति किसी परिणाम को स्वेच्छया कारित करता हुआ कब कहा जाता है ?
A. एक व्यक्ति किसी परिणाम को स्वेच्छया कारित करता है ,
( 1 ) यदि वह उसे उन साधनों द्वारा कारित करता है , जिनके द्वारा उसे कारित करना उसका आशय था , या ( 2 ) वह उन साधनों द्वारा कारित करता है जिन साधनों को काम में लाते समय वह यह जानता था कि उसका कारित होना संभाव्य था , या
( 3 ) वह उन साधनों द्वारा कारित करता है , जिन साधनों को काम में लाते समय वह यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उसका कारित होना संभाव्य है ।
( धारा 39 )
अध्याय 3 दंडों के विषय में
Q. 8 भारतीय दण्ड संहिता में कितने प्रकार के दण्डों का प्रावधान है ?
A. संहिता की धारा 53 में वर्तमान में 5 प्रकार के दण्डों का प्रावधान है जो निम्न है
( i ) मृत्यु
( ii ) आजीवन कारावास या
( iii ) कारावास ( कठिन / साधारण )
( iv ) सम्पत्ति का समपहरण
( v ) जुर्माना वर्तमान
Q. 9 आजीवन कारावास की सजा का क्या अर्थ है ?
A. अभियुक्त के सम्पूर्ण अवशिष्ट जीवन के लिए सजा जब तक कि सजा में पूर्णतः या आंशिक रूप में समुचित सरकार द्वारा छूट नहीं दे दी जाती । आजीवन कारावास की सजा 20 वर्ष की अवधि बीतने पर स्वतः समाप्त नहीं हो जाती ।
Q. 10 जब अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो और अभियुक्त जुर्माना की रकम का संदाय नहीं करता है तो उसे अधिकतम कितनी अवधि तक के कारावास का दण्ड दिया जा सकता है |
( i ) पचास रुपयों तक के जुर्माने पर दो मास तक का सादा कारावास
( ii ) सौ रुपयों तक के जुर्माने पर चार मास तक का सादा कारावास
( iii ) अन्य दशा में छः मास तक का सादा कारावास
[ धारा 67 ]
अध्याय 4 साधारण अपवाद
Q. 11 ‘ तथ्य की भूल ‘ और ‘ विधि की भूल ‘ के अन्तर को स्पष्ट कीजिये ।
➡️ तथ्य की भूल
- तथ्य की भूल क्षम्य है
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 76 व 79 के प्रावधान तथ्य की भूल से सम्बन्धित है
- तथ्य की भूल में व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध नहीं होता है , बल्कि इसका केवल अनुमान होता है । लगाया जा सकता है
➡️ विधि की भूल
- विधि की भूल क्षम्य नहीं है
- भारतीय दण्ड संहिता की किसी भी धारा में विधि की भूल के कोई प्रावधान नहीं है
- विधि की भूल में व्यक्ति विधि द्वारा आबद्ध होता है
Q. 12 अपराध करने में अक्षम व्यक्ति स्पष्ट करें
➡️ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 82 के अनुसार ” कोई बात अपराध नहीं है जो सात वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा की जाती है ।
भारत में 7 वर्ष से कम आयु के शिशुओं को अपराध करने में अक्षम ‘ ( doli incapax ) कहा जाता है । अतः उन्हें अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता ।
इंग्लैण्ड में यह आयु 10 वर्ष की है ।
➡️ धारा 83 सात वर्ष से अधिक परन्तु बारह वर्ष से कम आयु के शिशु को आपराधिक दायित्व से सीमित उन्मुक्ति प्रदान करती है । क्योंकि ऐसे शिशु सक्षम गुड़िया ( doli capax ) की श्रेणी में आते हैं ।
➡️ सीमित उन्मुक्ति निम्नलिखित तथ्यों पर निर्भर करती है
( i ) किये गये कार्य की प्रकृति ,
( ii ) अभियुक्त का पश्चातवर्ती आचरण ,
( iii ) अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति और आचरण
👉 उल्ला महापात्र 1950 कटक 293 के बाद में अभियुक्त जो 11 वर्ष से अधिक तथा 12 वर्ष से कम आयु का था , एक चाकू लेकर मृतक की ओर यह कहते हुए बढ़ा था कि उसे काटकर टुकड़ों – टुकड़ों में कर देगा और उसने सचमुच उसे काट डाला । न्यायालय ने उसे दोषसिद्ध प्रदान करते हुए यह अभिनिर्धारित किया कि वह अपरिपक्व समझ का नहीं था क्योंकि उसने वही किया जो कुछ उसने करने को कहा था ।
Q. 13 एक कामगार उचित चेतावनी देकर छत से बर्फ फेंकता है । एक राहगीर की मृत्यु हो जाती है । कामगार किस अपराध का दोषी है ?
मृत्यु आकस्मिक थी , इसलिए दोषी नहीं है ।
( धारा 80 )
Q. 14 प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का क्या तात्पर्य है ? यह अधिकार किसके विरूद्ध उपलब्ध है ? संक्षिप्त में उत्तर दें
प्राइवेट प्रतिरक्षा के इस निजी सुरक्षा के अधिकार के अन्तर्गत कोई व्यक्ति अपने या अन्य व्यक्ति के शरीर एवम् सम्पत्ति ( चाहे जंगम हो या स्थावर ) के विरूद्ध किये जा रहे आपराधिक कृत्य से बचने या बचाने का कृत्य करता है तो यह कार्य अपराध होते , हुए भी , अपवाद की कोटि में आ जाने के कारण , दण्डनीय नहीं है ।
[ धारा 96 से 106 ]
Q. 15 शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने या अन्य अपहानि कारित करने तक कब होता है ?
( i ) ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा, ( ii ) ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा ,
( iii ) बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला ; ( iv ) प्रकृति – विरुद्ध काम – तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला ,
( v ) व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला ,
( vi ) इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए , जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा ।
[ धारा 100 ]
Q. 16 किसी व्यक्ती को सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार किन – किन परिस्थितियों में मृत्यु कारित करने तक का होता है ?
A. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार निम्नलिखित परिस्थितियों में मृत्यु कारित करने तक का होता है :
( i ) लूट :
( ii ) रात्रि गृह – भेदन ;
( iii ) अग्नि द्वारा रिष्टि , जो किसी ऐसे निर्माण , तम्बू या जलयान को की गई है , जो मानव आवास के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है ;
( iv ) चोरी , रिष्टि या गृह अतिचार , जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है , जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा ।
[ धारा 103 ]
अध्याय 5 दुष्प्रेरण के विषय में
Q. 17 ‘ अ ‘ , ‘ ब ‘ को मिथ्या साक्ष्य देने के लिये उकसाता है और ‘ ब ‘ तदनुसार मिथ्या साक्ष्य दे देता है । बताइये कि ‘ अ ‘ किसी अपराध का दोषी है अथवा नहीं ? यदि हां तो कौनसे अपराध का ?
A. ‘ अ ‘ ने मिथ्या साक्ष्य के दुष्प्रेरण का अपराध किया और ‘ अ ‘ उसी दण्ड का दायी होगा , जिसके लिये ‘ ब ‘ दायी है । [ धारा 109 ]
Q. 18 ‘अ ‘ और ‘ ब ‘ दोनों पुलिस विभाग में सन्तरी थे । ‘ अ ‘ पुलिस विभाग की इस नौकरी से तंग आ चुका था । अतः उसने ‘ ब ‘ को अपने ( ‘ अ ‘ के ) हाथ के अंगूठे को बन्दूक से उड़ा देने को कहा जिससे कि वह पुलिस सेवा में अयोग्य हो जाने के परिणामस्वरूप इससे सेवा – मुक्ति ले सके । क्या ‘ अ ‘ द्वारा कोई अपराध कारित किया गया ? यदि हां तो कौनसा ?
चूंकि ‘ अ ‘ ने ‘ ब ‘ को उपरोक्त विधिविरुद्ध कृत्य के लिये उकसाया था , अतः ‘ अ ‘ दुष्प्रेरण के अपराध का दोषी है । [ धारा 108 ]
Q. 19 दुष्प्रेरण को परिभाषित एवं संक्षेप में स्पष्ट करें
A. भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 107 से लेकर 120 तक दुष्प्रेरण के संबंध में प्रावधान किए गए है
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 107 दुष्प्रेरण के संबंध में उसकी परिभाषा प्रस्तुत कर रही है। इस परिभाषा के अनुसार दुष्प्रेरण का अपराध तीन प्रकार से कारित किया जा सकता है अर्थात 3 तरीके ऐसे हैं जिनसे दुष्प्रेरण का कोई अपराध संभव हो सकता है, जो निम्न है-
1)- किसी व्यक्ति को उकसाकर अथवा उत्साहित कर
2)- षड्यंत्र द्वारा
3)- सहायता द्वारा
एक व्यक्ति किसी कार्य में दुष्प्रेरण का अपराध कारित करता है जो उस कार्य को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है या उत्क्रमित करता है। एक व्यक्ति दूसरे को कोई कार्य करने के लिए उत्प्रेरित करता हुआ कहा जाता है जब वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उस कार्य को करने का सक्रिय सुझाव देता है या उसे करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
शब्द उत्प्रेरण का अर्थ किसी कार्य को करने के लिए उत्प्रेरित करना आगे बढ़ाना यह प्रेरित करना है। यह प्रोत्साहित करना है दुष्प्रेरण के लिए दुष्प्रेरण द्वारा प्रयुक्त किए गए शब्दों के अर्थ में युक्तियुक्त अनिश्चितता का होना आवश्यक होता है लेकिन वास्तविक शब्दों को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है।
कोई व्यक्ति पत्र द्वारा भी किसी व्यक्ति को दुष्प्रेरित कर सकता है बशर्ते कि वह पत्र पाने वाले को मिल जाए यदि वह पत्र पाने वाले को नहीं मिलता है तो यह दुष्प्रेरण का प्रयास या दुष्प्रेरण के पूर्व की प्रक्रिया हो सकती।
अध्याय 5 A आपराधिक षड्यंत्र + अध्याय 6 राज्य के विरुद्ध अपराधों के विषय में
Q. 20 आपराधिक षडयंत्र की परिभाषा क्या है स्पष्ट करें
A. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120 – क में आपराधिक षडयंत्र को परिभाषित किया गया है ।
इसके अनुसार –
( 1 ) कोई अवैध कार्य , अथवा
( 2 ) कोई ऐसा कार्य , जो अवैध नहीं है , अवैध साधनों द्वारा करने या करवाने को सहमत होते हैं , तब ऐसी सहमति आपराधिक षडयंत्र कहलाती है ।
👉 परन्तु किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षडयंत्र तब तक न होगी , जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता । [ धारा 120 – क ]
👉 आपराधिक षडयंत्र नामक एक नये अपराध का सृजन 1913 ई में किया गया । इसके पूर्व धारा 107 के अन्तर्गत षडयंत्र को दुष्प्रेरक माना गया था ।
👉 आपराधिक षडयंत्र मात्र दो या दो से अधिक व्यक्तियों के आशय द्वारा गठित नहीं होता अपितु इसके लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच कोई अवैध कार्य या अवैध साधनों द्वारा वैध कार्य को करने के लिए सहमति होना आवश्यक है ।
Q. 21 भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत कौन – कौन से अपराधों की तैयारी मात्र को दण्डनीय किया गया है ?
सामान्यतः किसी अपराध की तैयारी करना दण्डनीय नहीं माना जाता है , परन्तु भारतीय दण्ड संहिता के अधीन अपराध की गम्भीरता को दृष्टिगत रखते हुए . निम्नलिखित अपराधों की सिर्फ तैयारी को भी दण्डनीय किया गया है :
( i ) भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से इसकी तैयारी करना । [ धारा 122 ]
( ii ) भारत सरकार के साथ शांति का सम्बन्ध रखने वाली शक्ति के राज्यक्षेत्र में लूटपाट करने की तैयारी करना । [ धारा 126 ]
( iii ) डकैती डालने की तैयारी करना । [ धारा 399 ]
Q. 22 ” अप्रीति ” शब्द से क्या तात्पर्य है ?
A. ” अप्रीति ” पद के अंतर्गत अभक्ति और शत्रुता की समस्त भावनायें आती है ( स्पष्टीकरण 1 धारा 124 क )
अध्याय 8 – लोक प्रशांति के विरुद्ध अपराधों के विषय में
धारा 141 से 160 तक
Q. 23 विधि विरूद्ध जमाव का आवश्यक तत्व क्या है ?
5 या अधिक व्यक्तियों का जमाव एक विधि विरूद्ध जमाव है यदि उनका सामान्य उद्देश्य –
( 1 ) आपराधिक बल के प्रयोग द्वारा
( a ) केन्द्रीय सरकार या
( b ) राज्य सरकार या
( c ) संसद या
( d ) किसी लोक सेवक में से किसी को आतंकित करना है
( 2 ) किसी विधि या विधिक आदेशिका के निष्पादन का प्रतिरोध करना
( 3 ) रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध करना
( 4 ) आपराधिक बल द्वारा –
( a ) किसी सम्पत्ति का कब्जा लेना या
( b ) किसी व्यक्ति को अमूर्त अधिकार से वंचित करना
( c ) किसी अधिकार या अनुमानित अधिकार को प्रवर्तित करना ।
( 5 ) किसी व्यक्ति को आपराधिक बल या उसके प्रदर्शन द्वारा
( a ) वह कार्य करने के लिए जिसे करने के लिए वह वैधतः आबद्ध नहीं है , या
( b ) उस कार्य का लोप करने के लिए जिसे करने के लिए वह वैधतः हकदार है , विवश करना है ।
Q. 24 बलवा करना से क्या अभिप्राय है ?
धारा 146 के अनुसार – जब कभी विधि विरूद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसे जमाव के सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तब ऐसे जमाव का सदस्य बल्वा करने के अपराध का दोषी होगा ।
➡️ बल्वा के लिए आवश्यक तत्व –
- अभियुक्तों की संख्या 5 या अधिक हो तथा वे विधि विरुद्ध जमाव निर्मित करते हों ,
- अभियुक्तों का एक ही सामान्य उद्देश्य हो ,
3 . विधि विरूद्ध जमाव द्वारा या उसके किसी एक सदस्य द्वारा सामान्य उद्देश्य के अनुसरण में बल या हिंसा का प्रयोग होना चाहिए ।
Q. 25 दंगा क्या है ?
A. जबकि दो या आधिक व्यक्ति लोक स्थान में लड़कर लोक शाँति में विघ्न डालते है , तब यह कहा जाता है कि वह दंगा करते हैं ।
➡️ दंगा के प्रमुख अवयव क्या –
( i ) दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच लड़ाई ,
( ii ) लड़ाई किसी सार्वजनिक स्थान में हो ,
( iii ) उनकी लड़ाई से लोक शांति में व्यवधान पहुँचे
अध्याय 10 : लोक – सेवकों के विधिपुर्ण प्राधिकार के अवमान के विषय में
Q. 26 यदि लोक सेवक द्वारा निकाले गए समन की तामील या अन्य कार्यवाही से बचने के लिए कोई व्यक्ति फरार हो जाता है तो दण्ड संहिता में दण्ड का क्या प्रावधान है ?
जो कोई वैध रूप से सक्षम लोक – सेवक द्वारा निकाले गए “समन , सूचना या आदेश” की तामील से बचने के लिए फरार हो जाएगा
वह सादा कारावास से , जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी , या जुर्माने से , जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा , या दोनों से दण्डित किया जाएगा |
Q. 27 धारा 177 मिथ्या इतिला देना को स्पष्ट करें |
जो कोई किसी लोक – सेवक को ऐसे लोक – सेवक के नाते किसी विषय पर इतिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध होते हुए
उस विषय पर सच्ची इत्तिला के रूप में ऐसी इत्तिला देगा जिसका मिथ्या होना वह जानता है या जिसके मिथ्या होने का विश्वास करने का कारण उसके पास है ,
वह सादा कारावास से , जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी , या जुर्माने से , जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा , या दोनों से
यदि वह इत्तिला , जिसे देने के लिए , वह वैध रूप से आबद्ध हो , कोई अपराध किए जाने के विषय में हो , या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के प्रयोजन से , या किसी अपराधी को पकड़ने के लिए अपेक्षित हो ,
तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी , या जुर्माने से , या दोनों से , दण्डित किया जाएगा ।
अध्याय 11 : मिथ्या साक्ष्य और लोक न्याय के विरुद्ध अपराध
Q. 28 ‘ मिथ्या साक्ष्य देने ‘ एवम् ‘ मिथ्या साक्ष्य गढ़ने में अन्तर बताइये ।
➡️ मिथ्या साक्ष्य देना
( 1 ) जो व्यक्ति सशपथ या विधितः सत्य कथन करने हेतु बाध्य होते हुए मिथ्या कथन करता है । उसे मिथ्या साक्ष्य देना कहते है ।
( 2 ) आरोपी सशपथ या विधिक तौर पर सत्य ( कथन या घोषणा करने के लिये बाध्य होता है ।
( 3 ) न्यायिक या न्यायिकेतर कार्यवाही का होना आवश्यक है ।
( 4 ) जिस प्राधिकारी के समक्ष यह अपराध होता है । उस पर प्रभाव पड़ना महत्वहीन है ।
[ धारा 191 ]
➡️ मिथ्या साक्ष्य गढ़ना
( 1 ) साशय मिथ्या परिस्थिति को अस्तित्व में लाना , मिथ्या कथन या प्रविष्टि करने को मिथ्या साक्ष्य गढ़ना कहते है ।
( 2 ) सशपथ या विधिक तौर पर सत्यकथन या घोषणा करने हेतु आरोपी बाध्य नहीं होता |
( 3 ) न्यायिक या न्यायिकेतर कार्यवाही होना आवश्यक नहीं है , बल्कि सम्भावना होने पर उसमें साशय प्रयोग करना ही पर्याप्त है ।
( 4 ) इस अपराध का यह महत्वपूर्ण घटक है कि मिथ्या साक्ष्य किसके सामने गढ़ी गयी ।
[ धारी 192 ]
Q. 29 विचारण में यह सिद्ध हो जाता है कि ‘ ए ‘ ने ‘ बी ‘ के विरूद्ध मिथ्या साक्ष्य दिया था और उसका यह आशय था कि उसके द्वारा ‘ बी ‘ डकैती के लिए दोषसिद्ध किया जाये , जिसका दण्ड जुर्माना सहित या रहित आजीवन कारावास या ऐसा कठिन कारावास है जो दस वर्ष की अवधि तक का हो सकता है । ‘ ए ‘ के विरूद्ध विचारण में उसे क्या दण्ड दिया जा सकता है ?
मिथ्या साक्ष्य देने वाला व्यक्ति भी अपना दोषसिद्ध हो जाने पर वैसे ही दण्डित किया जायेगा जैसे वह व्यक्ति दण्डनीय होता जो उस अपराध के लिये दोषसिद्ध होता । अतः ‘ ए ‘ का दण्ड जुर्माना सहित . या रहित आजीवन कारावास या दस वर्ष की अवधि तक का कठिन कारावास हो सकता है ।
[ धारा 195 ]
Q. 30 एक पटवारी जो कि राज्य सरकार का कर्मचारी है , भ्रष्टाचार के आरोप में पांच सौ रुपये के एक अंकित नोट के साथ गिरफ्तार किया जाता है । पुलिस अधिकारी जब उसकी तलाशी का पंचनामा तैयार कर रहा था , तब उपरोक्त उपरोक्त सरकारी कर्मचारी इस नोट को चबा कर खा जाता है । उसके द्वारा कौनसा अपराध कारित किया गया ?
इस प्रश्न में राज्य सरकार का एक कर्मचारी भ्रष्टाचार के आरोप में पांच सौ रुपये के एक अंकित नोट के साथ गिरफ्तार किया गया था ।
इस अंकित नोट को दाण्डिक प्रकरण में साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त किया जाना था , जिसे उपरोक्त पटवारी चबा कर खा गया एवम् इस नोट के अस्तित्व को ही समाप्त कर दिया ।
इस प्रकार उसने जानबूझकर उस अपराध के लिये प्रयुक्त किये जाने वाली साक्ष्य का विलोपन इस आशय से किया कि वैध दृण्ड से बच सके अथवा प्रतिच्छादित कर सके । परिणामस्वरूप , उसने धारा 201 , भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध कारित किया ।
[ धारा 201 ]
Q. 31 न्यायिक मजिस्ट्रेट की न्यायालय में , ‘ अ ‘ ‘ ब ‘ के विरूद्ध एक परिवाद प्रस्तुत करता है , जिसमें ‘ ब ‘ के विरूद्ध मिथ्या आरोप इस आशय से लगाता है कि ‘ ब ‘ को आरोपित अपराध की सजा मिल सके अथवा उसे क्षति पहुंचे । ‘ अ ‘ ने कौनसा अपराध किया ?
‘ अ ‘ ने ‘ ब ‘ पर क्षति कारित करने के आशय से मिथ्या आरोपित करने का अपराध किया । [ धारा 211 ]
Q. 32 ‘ अ ‘ यह जानते हुए कि ‘ ब ‘ ने ‘ स ‘ की हत्या की थी , ‘ ब ‘ को वैध दण्ड से बचाने के आशय से संश्रय देता है व उसे छिपा लेता है । ‘ अ ‘ कौनसे अपराध का दोषी है ?
A. ‘ अ ‘ साशय अपराधी को संश्रय देने के अपराध का दोषी है । [ धारा 212 ]
Q. 3 एक थानाधिकारी द्वारा किसी अभियुक्त को वैध दण्डादेश से बचाने के आशय से पुलिस केस डायरी में गलत प्रविष्टियां की जाती है । थानाधिकारी द्वारा कौनसा अपराध किया गया ?
A. थानाधिकारी ने एक लोक सेवक होते हुए अभियुक्त को दण्ड से बचाने के आशय से गलत ( incorrect ) अभिलेख तैयार करने का अपराध किया । [ धारा 218 ]
Q. 33 थानाधिकारी ‘ ख ‘ पुलिस थाने से अभियुक्त ‘ क ‘ को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की न्यायालय में रेलगाड़ी से ले जा रहा था । रास्ते में ‘ ख ‘ को नींद आ जाने का फायदा उठा कर ‘ क ‘ रेल से निकल भाग जाता है । ‘ क ‘ तथा ‘ ख ‘ ने क्रमशः कौन – कौनसे अपराध कारित किये ?
A
( i ) ‘ ख ‘ लोक सेवक ‘ क ‘ अभियुक्त को अपनी उपेक्षा ( negligence ) से विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने को सहन करने का अपराधी है ।
( ii ) ‘ क ‘ विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागने का दोषी है ।
अध्याय 14 : लोक स्वास्थ्य , क्षेम , सुविधा , शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में
Q. 34 ‘ लोक न्यूसेस ‘ किसे कहते हैं ?
A. कार्य या कार्यलोप , जिससे लोक को या जन – साधारण को सामान्य क्षति , संकट , बाधा या क्षोभ कारित हो । [ धारा 268 ]
Q. 35 ‘ क ‘ ने अपनी मोटर साइकिल को उपेक्षा और / या उतावलेपन से लोक मार्ग पर चलाते हुए ‘ ख ‘ को टक्कर मार कर गिरा दिया , जिससे ‘ ख ‘ के पैर की हड्डी का फ्रेक्चर हो गया । ‘ क ‘ कौनसे अपराध का दोषी है ?
A. ‘ क ‘ ने अपने वाहन को लोक मार्ग पर उपेक्षा और उतावलेपन गम्भीर उपहति कारित करने का दोषी है
[ धारा 279 व 338 ]
Q. 36 ‘ अ ‘ ने एक खतरनाक और काटने वाला कुत्ता पाल रखा है , जिसे वह गली में खुला छोड़ देता है , जिसके परिमामस्वरूप वह कुत्ता ‘ ब ‘ को काट लेता है । ‘ अ ‘ के दायित्व का निर्धारण कीजिये ।
A. ‘ अ ‘ जानते हुए या उपेक्षा पूर्वक लोप का दोषी है , क्योंकि उसने अपना कब्जासुद खतरनाक काटने वाला जीव – जन्तु ( कुत्ता ) खुला छोड़ दिया था जिसने ‘ ब ‘ को काट लिया था ।
[ धारा 289 ]
Q. 37 ‘ क ‘ नामक हिन्दू एक सूअर को उस मस्जिद की दिशा में भेजता है जहाँ नमाज चल रही होती है । उसने कौनसा अपराध किया ?
A. ‘ क ‘ विद्वेषपूर्ण आशय से धार्मिक विश्वासों का अपमान करने एवम् धार्मिक भावनाओं को आहत करने का दोषी है ।
[ धारा 295 – क ]
Q. 38 हर रोज हम समाचारपत्रों में साम्प्रदायिक दंगों के बारे में पढ़ते हैं अधिकतर धार्मिक उत्सवों के समय होते हैं । क्या भारतीय दण्ड संहिता में ऐसे अपराध जिनमें यदि दोषी पाये जाये तो ऐसे व्यक्तियों पर अभियोग लगाकर उन्हें सजा दी भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय का नम्बर लिखिये अथवा उसका शीर्षक बतायें अथवा ऐसे किसी एक अपराध को जो परिभाषित किया गया हो , लिखें ।
( आर.जे.एस. परीक्षा , 1986 )
A. भारतीय दण्ड संहिता , 1860 , के अध्याय 15 में शीर्षक ” धर्म से सम्बन्धित अपराधों के विषय में ” को समुचित स्थान दिया गया है ।
इसमें धार्मिक उत्सवों के समय होने वाले सामप्रदायिक दंगे भी सम्मिलित है , जिनको दण्डनीय अपराध बनाया गया है । यह बात निर्विवाद है कि साम्प्रदायिक दंगों के कारण धार्मिक जमाव ( यथा उत्सव ) में विघ्न पड़ता है ।
धारा 296 के अनुसार , यदि कोई व्यक्ति धार्मिक उपासनां या धार्मिक संस्कारों में वैध रूप से लगे हुए जमाव में स्वेच्छया विघ्न कारित करेगा , वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से , या दोनों से दण्डित किया जा सकता है | – [ धारा 295 से 298 ]
अध्याय 16 मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय
Q. 39 आपराधिक मानव वध कब हत्या है ?
A. संहिता की धारा 300 के अनुसार आपराधिक मानव वध हत्या है यदि वह कार्य जिससे मृत्यु कारित की गई है
( 1 ) मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो अथवा
( 2 ) ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करना संभाव्य हो जिसको वह अपहानि कारित की गई है अथवा
( 3 ) यदि वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो अथवा
( 4 ) यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी अधिसंभाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना संभाव्य है और वह ऐसा कार्य बिना किसी प्रतिहेतु के करे ।
Q. 40 धारा 300 के अंतर्गत वे कौन सी परिस्थितियां दी गयी हैं जिनमें अपराध हत्या न होकर आपराधिक मानव वध हो जाता है ?
A. वे परिस्थितियाँ निम्न हैं –
( 1 ) गंभीर और अचानक प्रकोपन ,
( 2 ) प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अतिक्रमण ,
( 3 ) लोकसेवक द्वारा विधितः प्रदत्त अपने शक्तियों का अतिक्रमण
( 4 ) आकस्मिक लड़ाई में मृत्यु कारित होना ,
( 5 ) सम्मति से कारित की गयी मृत्यु ।
Q. 41 ‘ य ‘ की नाक खींचने का प्रयत्न क करता है , ‘ य ‘ प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में ऐसा करने से रोकने के लिए । ‘ क ‘ को पकड़ लेता है । परिणामस्वरूप ‘ क ‘ को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह ‘ य ‘ का वध कर देता है । यहाँ कौन – सा अपराध कारित किया गया है ?
A. यहाँ पर हत्या की गयी है , क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की गयी थी ।
अध्याय 16 मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय
Q. 42 धारा 320 के अनुसार घोर उपहति क्या है ?
A. उपहति की केवल नीचे लिखी किस्में घोर कहलाती हैं 1. पुंसत्वहरण ।
- दोनों में से किसी भी दृष्टि का स्थाई विच्छेद ।
- दोनों में से किसी भी कान की श्रवण शक्ति का स्थाई विच्छेद
- किसी भी अंग या जोड़ का विच्छेद ।
- किसी भी अंग या जोड़ की शक्तियों का नाश या स्थाई हाम
- सिर या चेहरे का स्थायी विद्रूपीकरण
- अस्थि या दांत का भंग या विसंधान ।
- कोई उपहति जो जीवन को संकटापन्न करती है या जिसके कारण उपहत व्यक्ति ‘बीस दिन’ तक तीव्र शारीरिक पीड़ा में रहता है या अपने मामूली कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है ।
Q. 43 धारा 326- ख के अंतर्गत ‘ अम्ल ‘ से क्या तात्पर्य है ?
A. धारा 326- ख के स्पष्टीकरण -1 के अनुसार अम्ल में शामिल है ऐसा पदार्थ जो अम्लीय या संक्षारक रूप या ज्वलन प्रकृति का है ,
जो शारीरिक क्षति करने योग्य है , जिससे क्षतिचिन्ह बन है जाते हैं या विद्रूपता या अस्थायी या स्थायी निःशक्तता हो जाती है |
Q. 44 एक मामले में ‘ क ‘ और ‘ ख ‘ में झगड़ा हो गया और ‘ क ‘ ने ‘ ख ‘ के चेहरे पर जोर से एक चप्पल मारा , इस चोट से ‘ ख अपने शरीर का संतुलन खो बैठा और पीछे पड़े एक पत्थर पर गिर पड़ा जिससे उसके सर में भीषण चोट आयी और ‘ ख ‘ मर गया । ‘ क ‘ किस अपराध का दोषी होगा ?
A. धारा 323 के अन्तर्गत उपहति के अपराध दोषी होगा
अध्याय 16 मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय
Q. 45 सदोष अवरोध के प्रमुख अवयव कौन से हैं ?
A. इस अपराध के प्रमुख अवयव हैं –
- किसी व्यक्ति को स्वेच्छया बाधा डालना ,
- बाधा ऐसी हो जो उस व्यक्ति को उस दिशा में जिसमें उस व्यक्ति को जाने का अधिकार है , जाने से निवारित कर दे ।
Q. 46 सदोष अवरोध तथा सदोष परिरोध में अन्तर स्पष्ट करें –
- सदोष अवरोध में एक ही दिशा में जाना बाधित रहता है जबकि सदोष परिरोध में सभी दिशाओं में ।
- सदोष अवरोध आंशिक अवरोध है जबकि सदोष परिरोध में स्वतन्त्रता पूर्ण रूप से बाधित हो जाती है ।
- सदोष परिरोध में सदोष अवरोध निहित है । सदोष परिरोध सदोष अवरोध का एक प्रकार है ।
- सदोष परिरोध में जहां एक निश्चित सीमा सदैव आवश्यक होती है वहीं सदोष अवरोध में यह आवश्यक नहीं ।
Q. 47 दो पुलिस अधिकारियों ने एक व्यक्ति को वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर लिया जो शराब के नशे में लोकशांति भंग कर रहा था । उसे पुलिस स्टेशन में बन्द कर दिया । यह तथ्य स्पष्ट नहीं था कि वह किस सीमा तक दूसरों के शरीर एवं सम्पत्ति के लिए खतरनाक था , जिस अपराध के लिए उसे गिरफ्तार किया गया वह असंज्ञेय था । इस प्रकरण में कौन सा अपराध हुआ ?
A. सदोष परिरोध
अध्याय 16 मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय
Q. 48 भारत में से व्यपहरण क्या है ?
A. धारा 360 के अनुसार – जो कोई किसी व्यक्ति का , उस व्यक्ति की , या उस व्यक्ति की ओर से सम्मति देने के लिए वैध रूप से प्राधिकृत किसी व्यक्ति की सम्मति के बिना , भारत की सीमाओं से परे प्रवहण कर देता है , वह भारत में से उस व्यक्ति का व्यपहरण करता है , यह कहा जाता है ।
➡️ धारा 360 के प्रमुख तत्व क्या है ?
- किसी व्यक्ति का भारत की सीमाओं से परे प्रवहण करना ,
- ऐसा प्रवहण प्रवहणित व्यक्ति की सम्मति के बिना हो ।
Q. 49 कोई व्यक्ति अपहरण करता है , यह कब कहा जाता है ?
A. जो कोई किसी व्यक्ति को किसी स्थान से जाने के लिए बल द्वारा विवश करता है , या किन्हीं प्रवंचना पूर्ण उपायों द्वारा उत्प्रेरित करता है , वह उस व्यक्ति का अपहरण करता है , यह कहा जाता है । Sec – 362
Q. 50 ‘ क ‘ 15 वर्षीय लड़की से पार्क में मिलता है । लड़की ‘ क ‘ से अपनी उम्र 19 वर्ष बताती है और उससे कहती है कि उसका पिता उसके साथ दुर्व्यवहार करता है और वह अपने पिता के घर से बाहर जाना पसन्द करेगी । ‘ क ‘ उसे अपने घर ले जाता है तथा उसे वहीं रहने की स्वीकृति दे देता है । ‘ क ‘ व्यपहरण का दोषी होगा या नहीं ?
A. ‘ क ‘ व्यपहरण का दोषी नहीं होगा क्योंकि उसने न तो दुष्प्रेरित किया था और न ही सक्रिय रूप से उसे रिझाया था , जिसके 23 आधार पर यह कहा जा सके कि वह लड़की अपने पिता का घर छोड़कर उसके साथ चली आयी ।
अध्याय 16 मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय
Q. 51 धारा 375 में किसी स्त्री के साथ मैथुन “कितनी परिस्थितियों” में बलात्संग गठित करेगा ? तथा धारा 375 में बलात्संग के लिए दी गयी परिस्थितियाँ क्या हैं ?
A. सात परिस्थितियों में ।
- उस स्त्री की इच्छा के विरुद्ध
- उस स्त्री की सम्मति के बिना
- उस स्त्री की सम्मति से जबकि सम्मति मृत्यु या उपहति के भय में डालकर प्राप्त की गयी हो
- उस स्त्री की सम्मति से जबकि वह पुरुष के अपना पति होने का विश्वास करती हो , जबकि पुरुष जानता है कि वह
उसका पति नहीं है । - उस स्त्री की सम्मति से जबकि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किसी जड़िमाकारी पदार्थ के प्रभाव में या मत्तता की स्थिति में देती है
- उस स्त्री की सम्मति या बिना सम्मति के जबकि उसकी आयु 16 वर्ष से कम है
Q. 52 सामूहिक बलात्संग के बारे में कौन – सी धारा कानूनी प्रावधान करती है ?
A. धारा 376 का स्पष्टीकरण एक कहता है कि जहां व्यक्तियों के में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सबके समान आशय समूह को अग्रसर करने में किसी स्त्री के साथ बलात्संग किया जाता है वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने इस धारा के अर्थ में सामूहिक बलात्संग किया
Q. 53 धारा 375 के अंतर्गत बलात्संग के अपराध के लिए किस आयु का व्यक्ति सक्षम है ?
A. 12 वर्ष से अधिक आयु का कोई लड़का ।
अध्याय 17 संपत्ति के विरुद्ध अपराधों के विषय में
धारा 405 से 424 तक
Q. 54 चुराई हुई सम्पत्ति क्या है ? कोई सम्पत्ति चुराई हुई कब नहीं रह जाती है ? स्पष्ट करें
A.
• वह सम्पत्ति जिसका कब्जा , चोरी द्वारा , या उद्दापन द्वारा या लूट द्वारा अंतरित किया गया है ,
• और वह सम्पत्ति जिसका आपराधिक दुर्विनियोग किया गया है या जिसके विषय में आपराधिक न्यास भंग किया गया है ,
• चाहे वह अंतरण या वह दुर्विनियोग या न्यासभंग भारत के भीतर किया गया हो या बाहर ।
➡️ यदि ऐसी सम्पत्ति जो चुराई जाने के पश्चात् ऐसे व्यक्ति के कब्जे में पहुँच जाती है जो उसके कब्जे के लिए वैध रूप से हकदार है तो वह चुराई हुई सम्पत्ति नहीं रह जाती है ।
Q. 55 धारा 415 के अंतर्गत छल के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
- किसी व्यक्ति को प्रवंचित करना
( a ) प्रवंचित व्यक्ति को कपटपूर्वक या बेईमानी से ,
• किसी व्यक्ति को सम्पत्ति परिदत्त करने या
• किसी व्यक्ति को कोई सम्पत्ति रखने हेतु सम्मति देने के लिए उत्प्रेरित करना ।
( b ) साशय उस व्यक्ति को कोई कार्य करने या करने का लोप करने के लिए उत्प्रेरित करना
• जिसे यदि इस प्रकार प्रवंचित न किया गया हो तो न करता
• तथा जिस कार्य या लोप से उस व्यक्ति को शारीरिक , मानसिक ख्याति सम्बन्धी या साम्पत्तिक नुकसान कारित होती है , या होनी संभाव्य है ।
Q. 56 संहिता की धारा 420 में उपबंधित विधि क्या है ?
A.
• जो कोई छल करेगा , और तद्द्वारा उस व्यक्ति को जिसे प्रवंचित किया गया है , बेईमानी से उत्प्रेरित करेगा कि
• वह कोई सम्पत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे या किसी भी मूल्यवान प्रतिभूति को या किसी चीज को , जो हस्ताक्षरित या मुद्रांकित है , और जो मूल्यवान प्रतिभूति में सम्परिवर्तित किये जाने योग्य है ,
• पूर्णतः या अंशतः रच दे , परिवर्तित कर दे , या नष्ट कर दे ,
• वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि 7 वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।
Q. 57 रिष्टि के अपराध के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
A.
- लोक को या किसी व्यक्ति को सदोष हानि या नुकसान कारित करने का आशय या इस संभाव्यता का ज्ञान
- किसी सम्पत्ति को नष्ट करना या उसमें या उसकी स्थिति में कोई तब्दीली कारित करना
- ऐसी तब्दीली के फलस्वरूप सम्पत्ति नष्ट हो जाये या उसका मूल्य या उपयोगिता कम हो जाये या उस पर क्षतिकारक प्रभाव पड़े ।
Q. 58 क्या कोई व्यक्ति अपनी ही सम्पत्ति नष्ट कर रिष्टि का अपराध कारित कर सकता है ?
A. हाँ । ( धारा 425 स्पष्टीकरण -2 )
उदाहरण
‘ क ‘ और ‘ य ‘ एक घोड़े के संयुक्त स्वामी हैं । ‘ य ‘ को सदोष हानि कारित करने के आशय से ‘ क ‘ घोड़े को गोली मार देता है ।
‘ क ‘ ने रिष्टि की है । हालांकि वह घोड़ा उसका अपना भी था ।
Q. 59 यदि कोई व्यक्ति रिष्टि करके 50 रु . या उससे अधिक मूल्य की वस्तु का नुकसान कारित करता है तो उसे किस दण्ड से दण्डित किया जायेगा ?
A. ऐसी दशा में उसे 2 वर्ष तक के किसी भांति के कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा |
Q. 60 आपराधिक अतिचार के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
A.
- किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे में वर्तमान किसी सम्पत्ति में या पर प्रवेश
- यदि यह प्रवेश विधि सम्मत है तो विधि विरुद्ध तरीके से ऐसी सम्पत्ति में या पर बना रहे
- ऐसा प्रवेश या अवैधतः बना रहना – कोई अपराध कारित करने या किसी व्यक्ति को जिसके कब्जे में वह सम्पत्ति है [अभित्रस्त , अपमानित या क्षुब्ध] करने के आशय से करना चाहिए
Sec 441
Q. 61 ‘ ख ‘ ने यह बहाना कर कि वह मीटर रीडिंग करने के लिए मध्य प्रदेश विद्युत मण्डल की ओर से आया है , इस बंदिश में घर के द्वार खुलवाये । घर में प्रवेश करने पर कुर्सी पर रखा हैंड बैग चुरा लिया । ख किस अपराध के लिए अभियोजित किया जा सकता है ?
A. गृह अतिचार तथा चोरी ।
Q. 62 रात्रौ प्रच्छन्न गृह अतिचार क्या है ?
A. धारा 444 के अनुसार –
जो कोई सूर्यास्त के पश्चात और सूर्योदय से पूर्व प्रच्छन्न गृह – अतिचार करता है , वह रात्रौ प्रच्छन्न गृह अतिचार करता है , यहा कहा जाता है ।
Q. 63 ‘ य ‘ के गृह के द्वार के छेद में से तार डालकर सिटकिनी को ऊपर उठाकर उस द्वार में प्रवेश करने द्वारा ‘ क ‘ गृह अतिचार करता है ‘ क ‘ कौन सा अपराध करता है ?
A. गृह भेदन का ।
अध्याय 18 दस्तावेजों और संपत्ति चिन्ह संबंधी अपराधों के विषय में
Q. 64 कूटरचना के अपराध के आवश्यक तत्व क्या है ?
A.
( 1 ) किसी मिथ्या दस्तावेज या उसके किसी भाग की रचना करना ।
( 2 ) ऐसी रचना निम्नलिखित में से किसी आशय से की जाए –
( a ) जन साधारण या किसी व्यक्ति को क्षति या उपहति कारित करने के आशय से या
( b ) किसी दावे या हक का समर्थन करने के आशय से ।
( c ) किसी व्यक्ति से किसी सम्पत्ति को अलग करने के आशय से ।
( d ) किसी व्यक्ति को किसी अभिव्यक्ति या विवक्षित संविदा में भागीदार बनाने के आशय से ।
( e ) कपट करने या कपट किए जाने के आशय से ।
Q. 65 ‘ क ‘ एक कल्पित व्यक्ति के नाम कोई विनिमय पत्र लिखता है और उसका परक्रामण करने के आशय से उस विनिमय पत्र को उसे कल्पित व्यक्ति के नाम में कपटपूर्वक प्रतिग्रहीत कर लेता है । ‘ क ‘ ने कौन सा अपराध किया ?
A. धारा 464 के स्पष्टीकरण 1 के अर्थों में कूट रचना की
Q. 66 ‘ अ ‘ ने ब से ऋण लिया था जिसका भुगतान वह कर चुका था परन्तु उसकी रसीद उससे खो गयी थी । उस भुगतान की वह दूसरी रसीद बना लेता है , जब ‘ ब ‘ उस पर पुनः भुगतान का दावा करता है तो उस रसीद को ‘ अ ‘ साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करता है । अ ‘ किस अपराध का दोषी है ?
A. किसी भी अपराध का नहीं । ( धारा 470 )
अध्याय 20 विवाह सम्बन्धी अपराधो के विषय में + अध्याय 20 A पति या पत्नी के नातेदारो द्वारा क्रूरता के विषय में
धारा 493 से 498A तक
Q. 67 द्विविवाह से सम्बन्धित अपराध से क्या अभिप्रेत है ?
A. ऐसा विवाह जो पक्षकार के पति या पत्नी के जीवित होने की दशा में किया गया । शून्य विवाह है ।
[धारा 494]
Q. 68 ‘ ब ‘ की पत्नी ‘ अ ‘ को ‘ ब ‘ के बारे में कुछ पता नहीं है क्योंकि वह ( ब ) सात वर्षों से निरन्तर अनुपस्थित है और न ही ‘ अ ‘ ने अपने पति ‘ ब ‘ के बारे में यह सुना कि वह जीवित है । इन सभी तथ्यों की वास्तविक जानकारी ‘ अ ‘ ने ‘ ग ‘ को दे कर ‘ ग ‘ से विवाह कर लेती है । क्या ‘ अ ‘ द्वि – विवाह करने की दोषी है ? .
A. ‘ अ ‘ द्वि – विवाह के अपराध की दोषी नहीं है ।
[ धारा 494 अपवाद ]
Q. 69 जारकर्म का क्या अभिप्राय है ?
A. किसी व्यक्ति द्वारा अन्य पुरुष की पत्नी के साथ उस पुरुष की सम्मति अथवा मौनानुकूलता के बिना किया गया मैथुन , जो बलात्संग न हो , जारकर्म कहलाता है ।
[ धारा 497 ]
Q. 70 उन स्त्रियों का वर्गीकरण कीजिये जिनके साथ जारकर्म किया ही नहीं जा सकता है ।
A.
( 1 ) विधवाः
( 2 ) अविवाहिता एवं
( 3 ) वह स्त्री जिसके पति ने अन्य पुरुष को मैथुन की ऐसी सम्मति दे दी है ।
[ धारा 497 ]
Q. 71 भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार ‘ क्रूरता ‘ किसे कहते है ?
A. जब किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार जानबूझ कर उस स्त्री को शारीरीक या मानसिक क्षति पहुंचाते है , आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करते हैं , तंग करते है ; अथवा दहेज , मूल्यवान प्रतिभूति या विधिविरुद्ध मांग की पूर्ति करने हेतु प्रपीड़ित करते है , तब क्रूरता कहा जाता है ।
[ धारा 498- क ]
अध्याय 21 मानहानि के विषय में
Q. 72 धारा 499 के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
( 1 ) किसी व्यक्ति के बारे में किसी लांक्षन का लगाया जाना या लांक्षन का प्रकाशन
( 2 ) ऐसे लांक्षन
( a ) शब्दों द्वारा या तो बोलकर अथवा पढ़े जाने के लिए आशयित ।
( b ) संकेतों द्वारा ।
( c ) दृश्यरूपणों द्वारा लगाये जाने चाहिए ।
( 3 ) ऐसे लांक्षन अपहानि पहुँचाने के आशय से लगाये जाये या इस ज्ञान के विश्वास से लगाये जायें कि ये उस व्यक्ति की अपहानि कारित करेंगे जिनके विषय में ये लगाये गये हैं ।
Q. 73 ‘ क ‘ कहता है कि ” जो कुछ ‘ य ‘ ने उस विचारण में दृढ़तापूर्वक कहा है , मैं उस पर विश्वास नहीं करता क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह सत्यवादिता से रहित व्यक्ति है । क्या ‘ क ‘ को अपवाद 5 का लाभ मिलेगा ?
A. ‘ क ‘ को अपवाद 5 का लाभ नहीं मिलेगा और उसने ‘ य की मानहानि की है । क्योंकि वह राय जो वह ‘ य ‘ के शील के सम्बन्ध में अभिव्यक्त करता है , ऐसी राय है जो साक्षी के रूप में ‘ य ‘ के आचरण पर आधारित नहीं है ।
Q. 74 क एक दुकानदार है वह ख से , जो उसके कारबार का प्रबन्ध करता है , कहता है , “ य को कुछ मत बेचना जब तक कि वह तुम्हें नकद दाम न दे दे , क्योंकि उसकी ईमानदारी के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है । क धारा 499 के किस अपवाद के अंतर्गत आता है और क्यों ?
A. यहाँ पर ‘ क ‘ अपवाद संख्या 9 के अन्तर्गत संरक्षित है और वह य की मानहानि नहीं करता है क्योंकि उसने य पर यह लांछन अपने हितों की संरक्षा के लिए सद्भावपूर्वक लगाया है ।
Q. 75 मानहानि के लिए कितने दण्ड की व्यवस्था की गयी है ?
A. धारा 500 के अन्तर्गत सादा कारावास जो 2 वर्ष की अवधि का या जुर्माना या दोनों है ।
अध्याय 22 : आपराधिक अभित्रास , अपमान और क्षोभ के विषय में + अध्याय 23 : अपराधों को करने के प्रयत्नों के विषय में
Q. 76 आपराधिक अभित्रास के आवश्यक अवयव क्या हैं ? स्पष्ट करें
A.
• धारा 503 के अनुसार निम्नलिखित हैं –
( 1 ) किसी व्यक्ति को क्षति कारित करने की धमकी देना
( a ) क्षति की धमकी ऐसे व्यक्ति के शरीर , उसकी सम्पत्तििा या ख्याति के विपरीत या ,
( b ) ऐसे व्यक्ति से हितबद्ध किसी अन्य व्यक्ति के शरीर , सम्पत्तििा अथवा ख्याति के विपरीत दी गयी है ।
( 2 ) धमकी इस आशय से दी गयी हो कि
( a ) ऐसे व्यक्ति को संत्रास कारित किया जाये या
( b ) ऐसे व्यक्ति से ऐसी धमकी के निष्पादन का परिवर्जन करने के साधन स्वरूप कोई ऐसा कार्य कराया जाये , जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो , या
( c ) ऐसे व्यक्ति से ऐसे कार्य का लोप कराया जाये जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो ।
Q. 77 आपराधिक अभित्रास के लिए दण्ड की व्यवस्था संहिता की कौन सी धारा करती है ?
A. धारा 506
Q. 78 अभियुक्त ‘ क ‘ ने एक लड़की ‘ ख ‘ का कुछ अश्लील चित्र ले लिया था । ‘ क ‘ ने ‘ ख ‘ के पिता ‘ स ‘ को यह धमकी दिया कि यदि वह माँगे हुए पैसे की अदायगी नहीं करेगा तो वह उन अश्लील चित्रों को प्रकाशित कर देगा । ‘ क ‘ ने कौन सा अपराध किया है ?
A. ‘ क ‘ ने आपराधिक अभित्रास किया है ।
( रमेश चन्द्र अरोरा AIR 1960 SC का वाद )
Q. 79 धारा 511 किस अपराध में लागू नहीं होती है ?
A. हत्या के प्रयास में ।