🔘 CRPC 1973 NOTES

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◾Chapter 1

प्रारंभिक खंड Sec 1 से 5 तक

Question 1. जमानतीय अपराध क्या है ? जमानतीय और अजमानतीय अपराधों में क्या अंतर है ?

A. यह ऐसा अपराध है जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया है या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जमानतीय बनाया गया है ।

A. 3 वर्ष से कम अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध जमानतीय एवं उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध अजमानतीय कहलाते हैं ।

Sec 2 (A)

Question 2. परिवाद ( Complaint ) क्या है ? क्या पुलिस रिपोर्ट परिवाद समझा जाता है ?

A. परिवाद से संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किये जाने की दृष्टि से मौखिक या लिखित रूप में उससे किया गया यह अभिकथन अभिप्रेत है कि किसी व्यक्ति ने चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात अपराध किया है ।

पुलिस रिपोर्ट समान्यतया परिवाद नहीं समझी जाती ! किन्तु धारा 2 ( d ) के स्पष्टीकरण के अनुसार , ऐसे किसी मामले में , जो अन्वेषण के पश्चात् , किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट करता है , पुलिस अधिकारी द्वारा की गयी रिपोर्ट परिवाद समझी जायेगी और वह पुलिस अधिकारी जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गयी है , परिवादी समझा जाएगा

Sec 2(d)

Question 3.’ पुलिस रिपोर्ट ‘ को परिभाषित कीजिए ?

A. संहिता की धारा 2 ( द ) के प्रकाश में धारा 173 ( 2 ) के अंतर्गत पुलिस अधिकारी द्वारा संज्ञान करने हेतु सक्षम मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की गयी रिपोर्ट पुलिस रिपोर्ट कहलाती है , इसमें अन्वेषण का निष्कर्ष सम्मिलित होता है ।

Question 4. समन को दण्ड प्रक्रिया संहिता की किस धारा के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है ?

A. धारा 2 ( W )

Q. समन मामला किसे कहा जाता है ?

A. 2 वर्ष तक के कारावास की अवधि से दण्डनीय मामला समन मामला कहलाता है ।

◾◾Chapter 2

दंड न्यायालयो और कार्यालयो का गठन

Sec 6 से 25 A तक

Question 1. राज्य सरकार , अधिसूचना द्वारा राज्य के किसी ऐसे क्षेत्र को आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रयोजनों के लिए महानगर क्षेत्र घोषित कर सकती है जिसकी जनसंख्या हो ।

A. दस लाख । ( धारा 8 )

Question 2. कोई व्यक्ति अपर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने का पात्र तभी होगा , जब वह कम से कम कितने वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय करता रहा हो ?

A. सात वर्ष । ( धारा 24 ( 7 )

Question 3. विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति के लिए कितने वर्षों का विधि व्यवसाय आवश्यक होता है ?

A. 10 वर्ष । ( धारा 24 ( 8 )

Question 3. संहिता की धारा 13 के अंतर्गत विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट की नियुक्ति कितनी अवधि के लिए होती है ?

A. एक वर्ष से अनधिक अवधि के लिए ।

Question 4. लोक अभियोजकों की नियुक्ति कौन और किस लिए करता है ?

A. इनकी नियुक्ति केन्द्र सरकार या राज्य सरकार उस उच्च न्यायालय के परामर्श से किसी उच्च न्यायालय में करती है , जो किसी अभियोजन में अपील या अन्य कार्यवाही में राज्य या केन्द्र सरकार की ओर से संचालन करते हैं ।

Sec 24

Question 5. सहायक लोक अभियोजकों की नियुक्ति कौन और किस लिए करता है ?

A. इनकी नियुक्ति राज्य सरकार मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों में अभियोजनों का संचालन करने के लिए करती है ।

Sec 25

Question 6. यदि कोई सहायक लोक अभियोजक किसी विशेष मामले के प्रयोजन के लिए उपलब्ध नहीं है , तो किसी अन्य व्यक्ति को उस मामले का भार साधक सहायक लोक अभियोजक कौन नियुक्त कर सकता है ?

A. जिला मजिस्ट्रेट

Question 7. कोई पुलिस अधिकारी कब सहायक लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है ?

A. संहिता की धारा 25 ( 3 ) के परन्तुक के अनुसार कोई पुलिस अधिकारी निम्नलिखित दो परिस्थितियों में सहायक लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है

( a ) यदि उसने उस अपराध के अन्वेषण में भाग नहीं लिया है , जिसके बारे में अभियुक्त अभियोजित किया जा रहा है या

( b ) यदि वह निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है ।

◾◾Chapter 3

न्यायालयों की शक्ति

Sec 26 से 35 तक

Question 1. दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत किशोरों की आयु क्या मानी गयी है ? उनका विचारण कौन कर सकता है ?

A : न्यायालय में उपस्थिति के समय ( 16 वर्ष ) से कम बालक का विचारण मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अथवा किशोर न्यायालय द्वारा किया जा सकता है ।

[ धारा 27 ]

Question 2. सहायक सेशन न्यायाधीश कितनी सजा का दण्डादेश पारित करने हेतु सशक्त है

A : सहायक सेशन न्यायाधीश मृत्यु , आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक कारावास के सिवाय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश पारित कर सकता है ।

[ धारा 28 ( 3 ) ]

Question 3. सेशन न्यायाधीश क्या अधिकतम दण्डादेश दे सकता है ?

A. सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है , किन्तु मृत्यु दण्डादेश की पुष्टि उच्च न्यायालय द्वारा करना आवश्यक है ।

अपर सेशन न्यायाधीश को भी यही दण्डादेश की शक्तियां प्राप्त है । [ धारा 28 ]

Question 4. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट क्या अधिकतम दण्डादेश दे सकता है ?

A. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट विधि द्वारा प्राधिकृत सात वर्ष की अवधि का कोई भी दण्डादेश दे सकता है

[ धारा 29 ]

Question 5. अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा कितनी सजा दी जा सकती है ?

A : मृत्यु , आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक कारावास के सिवाय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश ।

[ धारा 29 ( 1 ) ]

Question 6. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग कितनी सजा करने के लिय सशक्त है ?

A. तीन वर्ष तक के लिए कारावास या दस हजार रूपयों तक का जुर्माना , या दोनों का दण्डादेश देने हेतु सक्षम ।

[ धारा 29 ( 2 ) ]

◾◾Chapter 4

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की शक्तियां

मजिस्ट्रेट और पुलिस की सहायता

Sec 36 से 40 तक

Question 1. दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन , आम जनता किन परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट तथा पुलिस की सहायता करने के लिये आबद्ध है ?

A. प्रत्येक व्यक्ति , ऐसे मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी की है , जो निम्नलिखित कार्यों में उसकी सहायता उचित रूप से माँगता है

( क ) किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को , जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी गिरफ्तार करने के लिये प्राधिकृत है , पकड़ना या उसका निकल भागने से रोकना ; अथवा

( ख ) परिशान्ति भंग का निवारण या दमन अथवा

( ग ) किसी रेल , नहर , तार या लोक सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने के प्रयत्न का निवारण |

[ धारा 37 ]

Question 2. क्या जनता अपराध की तुरन्त सूचना देने के लिये बाध्य है ? यदि हां तो कहां ?

A : दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 में उल्लेखित अपराधों के लिये जनता निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस को तुरन्त सूचना देने के लिये बाध्य है |

[ धारा 39 ]

◾◾Chapter 5

व्यक्तियों की गिरफ्तारी

Sec 41 से 50 A तक

Question 1. कोई प्राईवेट व्यक्ति किन स्थितियों में किसी और व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है ?

A : जब कोई व्यक्ति उद्घोषित अपराधी हो या उसकी उपस्थिति में कोई व्यक्ति संज्ञेय और अजमानतीय अपराध करता है । [ धारा 43 ]

Question 2. कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को स्वयं गिरफ्तार कब और किसको कर सकता है ?

A : कार्यपालक मजिस्ट्रेट ( अथवा न्यायिक मजिस्ट्रेट ) अपनी उपस्थिति में व स्थानीय अधिकारिता में अपराध करने वाले व्यक्ति को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है । [ धारा 44 ]

Question 3. सशस्त्र बलों के सदस्यों की गिरफ्तारी के हेतु दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत क्या प्रावधान है ?

A. सशस्त्र बल के सदस्यों को उनके पदीय कर्तव्यों के निर्वहन की किसी बात के लिये केन्द्रीय सरकार की सहमति के बिना गिरफ्तार नहीं किया जायेगा ।

[ धारा 45 ]

Question 4. दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार , गिरफ्तारी किस प्रकार की जाती है ?

A. गिरफ्तार किये जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुतः छू कर या परिरूद्ध करके गिरफ्तारी की जाती है

[ धारा 46 ]

Question 5. यदि हत्या का कोई अभियुक्त गिरफ्तारी से बच कर भाग रहा हो तो उसे भागने से रोकने हेतु क्या एक पुलिस ऑफिसर को गोली चलाने का और यदि आवश्यकता हो तो , अभियुक्त की मृत्यु कारित करने का अधिकार है ?

A : यदि गिरफ्तार किया जाने वाला हत्या का अभियुक्त गिरफ्तारी का बलात् विरोध करता है तो उसको अशक्त बनाने के लिये पुलिस ऑफिसर गोली चला सकता है और आवश्यकता हो तो मृत्यु कारित कर सकता है ।

[ धारा 46 ( 2 ) व ( 3 ) ]

Question 6. वह व्यक्ति जिसकी गिरफ्तारी की जानी है , वह उस स्थान का दरवाजा अन्दर से , थानाधिकारी द्वारा मांग करने पर भी नहीं खोलता है , की तलाशी व गिरफ्तारी कैसे की जायेगी ?

A. प्राधिकृत पुलिस अधिकारी उस स्थान का दरवाजा तोड़कर ऐसे व्यक्ति की तलाशी व गिरफ्तारी कर सकता है ।

[ धारा 47 )

Question 7. क्या किसी अपराधी का पीछा करते हुए पुलिस अधिकारी अपने स्थानीय क्षेत्राधिकार के बाहर , बिना वारण्ट से , उसको गिरफ्तार कर सकता है ?

A. प्राधिकृत पुलिस अधिकारी भारत के किसी भी स्थान में अपराधी का पीछा कर उसको गिरफ्तार कर सकता है [ धारा 48 ]

Question 8. क्या बिना वारण्ट के गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण और जमानत के अधिकार के बारे में इत्तिला देना पुलिस अधिकारी के लिये आवश्यक है ?

A. व्यक्ति को गिरफ्तारी का आधार और जमानत के अधिकार के बारे में इत्तिला देना पुलिस अधिकारी के लिये आवश्यक है

[ धारा 50 ( 1 ) ]

◾◾Chapter 5

व्यक्तियों की गिरफ्तारी

Sec 51 से 60 A तक

Question 1. एक गिरफ्तार व्यक्ति , दण्ड प्रक्रिया संहिता , 1973 की धारा 53 के अंतर्गत उसके मेडिकल परीक्षण का विराध क्यों नहीं कर सकता है ?

A : ऐसा किया जाना अभियुक्त को अपने विरूद्ध साक्षी होने हेतु बाध्य करने की श्रेणी में नहीं आता है ।

Question 2. क्या गिरफ्तार व्यक्ति की प्रार्थना पर उसका चिकित्सीय परीक्षण चिकित्सा अधिकारी द्वारा कराया जा सकता है ?

A : मजिस्ट्रेट के आदेश से ऐसा परीक्षण रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा कराया जा सकता है ।

[ धारा 54 ]

Question 3. गिरफ्तार सुदा व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष कितनी अवधि में प्रस्तुत करना आवश्यक है ?

A : गिरफ्तार सुदा व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के समक्ष चौबीस घंटो के अन्दर प्रस्तुत करना आवश्यक है ।

[ धारा 57 व 167 ]

Question 4. पुलिस द्वारा किसको गिरफ्तारी की रिपोर्ट करना आवश्यक है ?

A. पुलिस थानाधिकारी बिना वारण्ट के गिरफ्तार किये गये सभी व्यक्तियों के बारे में मजिस्ट्रेट को अथवा उसके निर्देशानुसार उपखण्ड मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट देगा ।

[ धारा 58 ]

Question 5. बलात्संग करने या इसका प्रयत्न करने वाले अभियुक्त को विस्तृत चिकित्सीय परीक्षण किससे कराया जायेगा ?

A : राजकीय प्राधिकृत चिकित्सालय के रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिसनर और उसकी अनुपस्थिति में , घटनास्थल से 16 किलोमीटर की परिधि में प्रेक्टिस करने चिकित्सालय या स्थानीय वाले किसी रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिसनर से ।

[ धारा 53 – A ]

Question 6. बलात्संग के अभियुक्त से सम्बन्धित चिकित्सीय परीक्षण रिपोर्ट में सक्षम रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिसनर द्वारा क्या ब्यौरा दर्ज किया जायेगा ?

A : अभियुक्त का नाम , आयु व विवरण , उसे किसके द्वारा लाया गया , उसके शरीर की उपहति या इसका निशान और डी.एन.ए. प्रोफाईलिंग हेतु उसके शरीर से ली गयी सामग्री का विवरण ।

[ धारा 53- A ]

Question 7. शिनाख्त परीक्षण से सम्बन्धित उपबंध संहिता की किस धारा में व्यवस्थित है ?

A. धारा 54 ( A ) में

◾◾Chapter 6

◾◾हाजिर होने को विवश करने वाले आदेशिकाएँ

समन और गिरफ्तारी का वारंट

Sec 61 से 81 तक

Question 1. न्यायालय किन तरीकों से किसी साक्षी को उपस्थित होने के लिये बाध्य कर सकता है ?

A.
( 1 ) समन द्वारा
( 2 ) जमानती वारण्ट द्वारा
( 3 ) गिरफ्तारी वारण्ट द्वारा
( 4 ) समन के अलावा वारण्ट जारी करके
( 5 ) फरार व्यक्ति की सम्पत्ति की कुर्की एवं
( 6 ) फरार व्यक्ति के लिये उद्घोषणा करके ।

[ धारा 61 , 70 , 72 , 82 , 83 व 87 ]

Question 2. निगमित निकायों और सोसाइटियों पर समन की तामील कैसे करायी जानी चाहिये ?

A :

ऐसे समन की तामील सचिव , स्थानीय प्रबन्धक या प्रधान अधिकारी पर अथवा भारत में निगम के मुख्य अधिकारी पर रजिस्ट्रीकृत डाक से करायी जानी चाहिये ।

[ धारा 63 ]

Question 3. जब समन किया गया व्यक्ति नहीं मिल सके तब तामील कैसे करायी जायेगी ?

A. जब समन किया गया व्यक्ति नहीं मिल सके तब उसके कुटुम्ब के साथ रहने वाले वयस्क पुरूष पर इसकी तामील करायी जा सकती है

[ धारा 64 ]

Question 4. क्या समन किया गया व्यक्ति उपलब्ध नहीं होने पर समन की तामील उसकी पत्नी अथवा नौकर पर करायी जा सकती है ?

A : जी नहीं [ धारा 64 ]

Question 5. जिस व्यक्ति पर समन की तामील करानी है , वह उपलब्ध नहीं है और न ही उसके परिवार का कोई अन्य सदस्य उपलब्ध है तो इसकी तामील कैसे करायी जायेगी ?

A : समन की दो प्रतियों में से एक को उसके आबाद मकान में सहज दृश्य भाग में लगायी जायगी ।

[ धारा 65 ]

Question 6. गिरफ्तारी वारण्ट कितने प्रकार के होते है ?

A : गिरफ्तारी वारण्ट दो प्रकार के होत है , यथा

( i ) जमानती , तथा
( ii ) अजमानतीय

Question 7. गिरफ्तारी वारण्ट कितनी अवधि तक प्रवर्तन में रहेगा ?

A : गिरफ्तारी वारण्ट निष्पादित होने तक या जारीकर्त्ता न्यायालय द्वारा इसको रद्द करने तक यह प्रवृत् रहता है ।

[ धारा 70 ( 2 ) ]

Question 8. गिरफ्तारी वारण्ट का निष्पादन किस को निर्दिष्ट किया जा सकता है ?

A : गिरफ्तारी वारण्ट सामान्यतः पुलिस अधिकारी तथा अन्य परिस्थतियों में किसी भी व्यक्ति को निर्दिष्ट किया जा सकता है ।

[ धारा 72 व 73 ]

Question .9 गिरफ्तारी का वारण्ट कहां निष्पादित किया जा सकता है ?

A : गिरफ्तारी वारण्ट भारत के किसी भी स्थान में निष्पादित किया जा सकता है ।

[ धारा 77 ]

Question .10 ‘ ए ‘ ने कलकत्ता में अपराध किया फिर वह अजमेर आ गया । पुलिस ने उसे कलकत्ता के न्यायालय द्वारा जारी किये गये वारन्ट के आधार पर अजमेर में गिरफ्तार किया । क्या ‘ ए ‘ की अजमेर में जमानत ली जा सकती हैं ? यदि हाँ तो किसके द्वारा ?

A : ‘ ए ‘ की जमानत अजमेर में निम्नलिखित अधिकारियों द्वारा ली जा सकती है –

( i ) अपराध जमानतीय होने की दशा में कार्यपालक मजिस्ट्रेट , जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त द्वारा ; तथा

( ii ) अपराध अजमानतीय होने की दशा में सेशन न्यायाधीश या मुख्यन्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा ।

[ धारा 81 ]

◾◾Chapter 6

हाजिर होने को विवश करने वाले आदेशिकाएँ

उद्घोषणा और कुर्की एवं अन्य नियम

Sec 82 से 90 तक

Question 1. फरार व्यक्ति के लिये उद्घोषणा कब प्रकाशित का जाती है ?

A : वारण्ट के निष्पादन से बचने के लिये फरार होने अथवा छिपने पर उद्घोषणा प्रकाशित की जा सकती है ।

[ धारा 82 ]

Question 2. फरार व्यक्ति की उद्घोषणा किस प्रकार से की जाती है ?

A : उद्घोषणा निम्नलिखित रूप से प्रकाशित की जायेगी :

( i ) वह उस नगर या ग्राम के , जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है , किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जाएगी ;

( ii ) वह उस गृह या निवासस्थान के , जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है , किसी सहजदृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहजदृश्य स्थान पर लगाई जाएगी ;

( iii ) उसकी एक प्रति उस न्याय – सदन के किसी सहजदृश्य भाग पर लगाई जायेगी ;

( iv ) दैनिक समाचार के प्रकाशन जहां ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है ।

[ धारा 82 ( 2 ) ]

Question 3. फरार व्यक्ति की सम्पत्ति कब कुर्क की जा सकती है ?

A :

( a ) जब फरार व्यक्ति अपनी समस्त सम्पत्ति या उसके अंशतः भाग को व्ययन करने वाला है ; अथवा

( b ) वह अपनी समस्त सम्पत्ति , या उसके अंशतः भाग को सम्बन्धित न्यायालय की स्थानीय अधिकारीता से हटाने वाला है ।

[ धारा 83 ( 1 ) ]

Question 4. फरार व्यक्ति के लिये प्रकाशित उद्घोषणा में कम से कम कितना समय दिया जाना विनिर्दिष्ट है ?

A : न्यूनतम तीस दिवस विनिर्दिष्ट करने की अवधि है ।

[ धारा 82 ( 1 ) ]

Question 5. जब कोई साक्षी न्यायालय के समक्ष समन की तामील के बावजूद अनुपस्थित रहता है तो न्यायालय को कौनसी शक्तियां प्राप्त है ?

A : साक्षी की गैर हाजिरी के उचित कारण के अभाव में न्यायालय गिरफ्तारी वारण्ट जारी कर सकता है ।

[ धारा 87 ]

Question 6. क्या न्यायालय उन मामलों में गिरफ्तारी वारण्ट जारी करने के लिये सशक्त है , जिनमें वह समन जारी कर सकता है ?

A : जिन मामलों में न्यायालय समन जारी करने में सशक्त है , उनमें कारण अभिलिखित करने के पश्चात् गिरफ्तारी वारण्ट जारी कर सकता है ।

[ धारा 87 ]

Question 7. अभियुक्त अपने बंध – पत्र को भंग करते हुए , न्यायालय में तारीख पेशी पर उपस्थित नहीं होता है तो उसको उपस्थिति के लिये कैसे बाध्य किया जायेगा ?

A : अभियुक्त का बन्ध – पत्र निरस्त किया जा कर उसको गिरफ्तारी वारण्ट से तलब किया जा सकता है ।

[ धारा 89 ]

Question 8. उद्घोषित फरार व्यक्ति ( absconding person ) की सम्पत्ति के विरूद्ध क्या कार्यवाही विधितः की जाना सम्भव है ?

A : उद्घोषित फरार व्यक्ति की चल या अचल अथवा दोनों सम्पत्तियों को विधितः कुर्क किया जा सकता है ।

[ धारा 82 व 83 ]

◾◾Chapter 7

चीजें पेश करने को विवश करने वाले आदेशिकाएँ

Sec 91 से 105 तक

Question 1. दस्तावेज अथवा अन्य वस्तु पेश करने के लिये कौन – सा अधिकारी आदेशिका / समन जारी कर सकता है ?

A : न्यायालय या थाने का भारसाधक अधिकारी विचारण / जाँच / अन्वेषण में समन जारी करने के लिये सशक्त है

[ धारा 91 ]

Question 2. तलाशी वारण्ट कब जारी किया जा सकता हैं ?

A : न्यायालय तलाशी – वारण्ट जारी कर सकता हैं –

( i ) जब न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण हैं कि कोई व्यक्ति समन या आदेश की पालना में अपेक्षित दस्तावेज या चीज पेश नहीं करेगा ;

( ii ) जब किसी चीज या दस्तावेज के बारे में न्यायालय को ज्ञात नहीं हैं कि वह किस व्यक्ति के कब्जे में हैं ,

( iii ) जब न्यायालय यह समझता हैं कि जांच , विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों की पूर्ति निरीक्षण या तलाशी से होगी ;

( iv ) जब न्यायालय को अमुक स्थान पर तलाशी लेने से चुरायी हुई सम्पत्ति , कूटरचित दस्तावेज , समपहृत करने योग्य प्रकाशन आदि होने का संदेह हैं , एवं

( v ) जब सदोष , परिरुद्ध व्यक्तियों और अपहृत स्त्रियों की तलाशी की जाना न्यायालय को आवश्यक प्रतीत होता हों ।

[ धारा 93 , 94 , 95 , 97 व 98 ]

Question 3. संहिता की धारा 94 के अंतर्गत तलाशी का वारण्ट किसके द्वारा जारी किया जा सकता है ?

A. केवल जिला मजिस्ट्रेट , उपखण्ड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा ।

Question 4. सदोष परिरूद्ध व्यक्तियों के लिये तलाशी वारण्ट जारी करने के लिये कौन सशक्त है ?

A : सदोष परिरूद्ध व्यक्तियों के लिये तलाशी वारण्ट जारी करने के लिये जिला मजिस्ट्रेट , उपखण्ड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट सशक्त है ।

[ धारा 97 ]

Question .5 क्या पुलिस थाना के भारसाधक अधिकारी को सदोष परिरूद्ध व्यक्तियों के लिए व अपहृत स्त्रियों को वापिस करने के लिये तलाशी वारण्ट जारी करने का अधिकार है ?

A : जी नहीं ।

Question .6 संहिता की धारा 95 किस विषय में उपबंध करती है ?

A. यह धारा कुछ प्रकाशनों के राज्य सरकार द्वारा समपहृत होने की घोषणा करने और उनके लिए तलाशी वारण्ट जारी करने की शक्ति के विषय में उपबन्ध करती है ।

Question. 7 संहिता की धारा 95 के अंतर्गत राज्य सरकार के समपहरण के उद्घोषणा को अपास्त करने के लिए आवेदन किसे किया जा सकता है ?

A. धारा 96 के अनुसार उच्च न्यायालय को

Question .8 संहिता की धारा 96 के अंतर्गत , धारा 95 के अधीन जारी समपहरण की घोषणा से व्यथित व्यक्ति , उच्च न्यायालय को आवेदन घोषणा के राजपत्र में प्रकाशन के कितने दिन के भीतर कर सकता है ?

A. 2 मास के भीतर ।

Question .9 अधिकारिता से परे तलाशी में पायी चीजों का चयन , किस धारा के अन्तर्गत आता है ?

A. धारा 101

Question 10. न्यायालय के समक्ष पेश की गई दस्तावेज आदि को परिबद्ध करने की शक्ति , किस धारा में निहित है ?

A. धारा 104

◾◾Chapter 8

परिशांति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति

Sec 106 से 115 तक

Question 1. किन परिस्थितियों में किसके द्वारा और किससे ‘दोषसिद्धी को छोड़ कर’ परिशांति कायम रखने के लिये प्रतिभूति निष्पादित करने का आदेश दिया जा सकता है ?

A :

◾जब कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा सदोष कार्य करेगा जिससे सम्भावयत परिशान्ति भंग हो जायेगी या लोक प्रशान्ती विशुद्ध हो जाएगी

◾तब यदि उसकी राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबन्धित रीति से उपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिये , जितनी मजिस्ट्रेट नियम करना ठीक समझे ,

◾परिशान्ति कायम रखने के लिये उसे प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने के लिये आदेश दिया जा सकता है ।

Sec 107

Question 2. दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 से 110 तक प्रतिभूति हेतु आदेश देने के लिये कौन सशक्त है ?

A : कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अधिकारिता प्राप्त है ।

[ धारा 107 से 110 ]

Question 3. परिशांति कायम रखने के लिये प्रतिभूति लेने हेतु कौन सशक्त है ?

A : अपराध की दोषसिद्धी पर सेशन अथवा प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट एवम् अन्य मामलों में कार्यपालक मजिस्ट्रेट

[ धारा 106 , 107 से 110 ]

Question 4. एक प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता , 1860 की धारा 406 के अंतर्गत सिद्धदोष करता है , अभियुक्त को एक वर्ष के लिए शान्ति और सदाचार बनाये रखने के लिये बन्धपत्र का निष्पादन करने का निर्देश क्यों नहीं सकता ?

A. क्योंकि यह अपराध धारा 106 ( 2 ) , दण्ड प्रक्रिया संहिता की परिधि में नहीं आता ।

Question 5. अभियुक्त के विरूद्ध ‘दोषसिद्धी पर’ परिशान्ति कायम रखने हेतु किसके द्वारा कितने वर्ष की प्रतिभूति ली जा सकती है ?

A : सेशन न्यायालय अथवा मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग के द्वारा अधिकतम तीन लिये प्रतिभूति ली जा सकती है ।

[ धारा 106 ]

Question 6. संहिता की किस धारा के अंतर्गत राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति का उपबन्ध किया गया है ?

A. धारा 108 के अंतर्गत ।

Question 7. संहिता की किस धारा के अंतर्गत आभ्यासिक अपराधियों से सदाचार हेतु प्रतिभूति ली जाती है ?

A. धारा 110 के अंतर्गत ।

Question 8. संहिता की कौन सी धारायें सदाचार के प्रतिभूति से सम्बन्धित हैं ?

A. धारा 108 , 109 एवं 110

◾◾Chapter 8

परिशांति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति

Sec 116 से 124 तक

Question 1. प्रतिभूति देने का आदेश किस धारा में निहित है ?

A. धारा 117

Question 2. उस व्यक्ति का उन्मोचन जिसके विरुद्ध इत्तिला दी गई है । किस धारा में निहित है ?

A. धारा 118

Question 3. प्रतिभुओं को अस्वीकार करने की शक्ति किस धारा में निहित है ?

A. धारा 121 में ।

Question 4. संहिता की धारा 106 के अंतर्गत जिस अवधि के लिए प्रतिभूति अपेक्षित होती है उसका प्रारम्भ कब से होता है ?

A. धारा 119 के अनुसार यदि व्यक्ति कारावास के लिए दण्डादिष्ट है और दण्डादेश भुगत रहा है तो वह अवधि , जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति की अपेक्षा की गयी है ऐसे दण्डादेश के अवसान पर प्रारम्भ होगी । अन्य दशाओं में ऐसी अवधि , ऐसे आदेश की तारीख से प्रारम्भ होगी , जब तक कि मजिस्ट्रेट पर्याप्त कारण से कोई बाद की तारीख निश्चित न करे ।

Question 5. मजिस्ट्रेट उस दशा में क्या कर सकता है , जब कि कोई व्यक्ति परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में विफल रहता है ?

A. जब कोई व्यक्ति परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में विफल रहता है तो दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 122 ( 1 ) के अधीन मजिस्ट्रेट उसे बंधपत्र के लिए अपेक्षित समयावधि तक कारावास से दण्डित कर सकेगा जो धारा 122 ( 7 ) के तहत कारावास सादा होगा ।

Question 6. मजिस्ट्रेट उस दशा में क्या कर सकता है जब कि कोई व्यक्ति सदाचरण कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में विफल रहता है ?

A. जब कि कोई व्यक्ति सदाचार कायम रखने हेतु प्रतिभूति देने में विफल रहता है तो ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट की शक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 122 ( 1 ) में दी गयी है , ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट उसे बन्धपत्र के लिए अपेक्षित समयावधि के लिए कारावासित कर सकेगा

जो धारा 122 ( 8 ) के अनुसार यदि धारा 108 के अधीन है , तो सादा कारावास होगा और यदि ऐसी विफलता धारा 109 और 110 के अधीन है तो वहां साधारण या कठिन किसी प्रकार का कारावास हो सकेगा ।

◾◾Chapter 9

पत्नी, सन्तान और माता पिता के भरण-पोषण के लिए आदेश

Sec 125 से 128 तक

Question 1. दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन कौन – कौन से व्यक्ति भरण – पोषण प्राप्त करने के हकदार है ? ऐसे आदेश को कब परिवर्तित या निरस्त किया जा सकता है ?

A : भरण – पोषण प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित व्यक्ति अधिकारी है :

( a ) पत्नी , जो अपना भरण – पोषण करने में असमर्थ हो , या
( b ) धर्मज या अधर्मज अवयस्क सन्तान , चाहे विवाहित हो या न हो , जो अपना भरण – पोषण करने में असमर्थ हो , या
( c ) धर्मज या अधर्मज सन्तान ( जो विवाहित पुत्री नहीं है जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,
परन्तु शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण – पोषण करने में असमर्थ हो , या
( d ) पिता या माता , जो अपना भरण – पोषण करने में असमर्थ हो ।

[ धारा 125 ]

👉 धारा 125 , दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन भरण – पोषण या अंतरित भरण – पोषण का भत्ता संदाय किये जाने वाले आदेश पारित कियो जाने के पश्चात , परस्थितियों में तब्दीली साबित हो जाने पर मजिस्ट्रेट यथास्थिति ऐसा आदेश रद्द कर सकता है या उसमें ऐसा परिवर्तन कर सकता है , जो वह ठीक समझे ।

[ धारा 127 ]

Question 2. ‘ ए ‘ तथा ‘ बी ‘ का कलकत्ता में विवाह हुआ । वे अन्तिम बार एक साथ दिल्ली में रहे । ‘ ए ‘ का स्थानान्तरण जयपुर हो गया और वह ‘ बी ‘ को उसके भाई के पास दिल्ली में छोड़कर आ गया । ‘ ए ‘ ने ‘ बी ‘ की उपेक्षा की व उसका भरण – पोषण करने से इन्कार कर दिया । बताइये किन – किन स्थानों पर दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 अन्तर्गत भरण – पोषण की राशि प्राप्त करने के लिए प्रार्थना पत्र दिये जा सकते है ?

A : भरण – पोषण की राशि प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित स्थानों पर प्रार्थना – पत्र प्रस्तुत किया जा सकता हैं :

( i ) दिल्ली : जहां दोनों पक्षकार ( ‘ ए ‘ तथा ‘ बी ‘ ) अंतिम बार रहे थे ; अथवा

( ii ) जयपुर : जहां ‘ ए ‘ वर्तमान में है ; अथवा

( iii ) जयपुर या दिल्ली : जहां ‘ ए ‘ तथा ‘ बी ‘ निवास करते है । [ धारा 126 ]

Question 3. धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता में दिये गये आदेश पर किसी सिविल न्यायालय के निर्णय का क्या प्रभाव पड़ेगा ?

A. यदि सिविल न्यायालय का कोई निर्णय इस बीच आता है तो धारा 127 ( 2 ) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट उस पर विचार करते हुए उसे लागू कर सकेगा ,

किन्तु दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत् आदेशित राशि दीवानी मामले में निर्णीत राशि में समायोजित हो जायेगी ।

Question 4. भरण – पोषण प्राप्त करने के लिये आवेदन – पत्र कहां पर प्रस्तुत किया जा सकता है ?

A : प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष [ धारा 125 ]

◾◾Chapter 10

लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखना

Sec 129 से 143 तक

Question 1. अगर विधि विरूद्ध जमाव से शान्ति भंग होने का अंदेशा हो तो , उसे तितर – बितर करने का आदेश देने में कौन सक्षम है ?

A : कार्यपालक मजिस्ट्रेट अथवा थाने का भारसाधक अधिकारी और भारसाधक थानाधिकारी की अनुपस्थिति में उप – निरीक्षक की पंक्ति से अनिम्न कोई पुलिस अधिकारी ।

[ धारा 129 ]

Question 2. जिस पुलिस अधिकारी ने विधि विरूद्ध जमाव को तितर – बितर करने के लिये बल – प्रयोग किया , क्या उसके विरूद्ध विधिक अभियोजन या विधिक कार्यवाही की जा सकती है ?

A : धारा 132 दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार ही पुलिस अधिकारी के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जा सकती है

[ धारा 132 ]

Question 3. उक्त प्रयोजनार्थ सशस्त्र बल का प्रयोग करने हेतु कौन आदेश दे सकता है ।

A : उच्चतम पंक्ति कार्यपालक मजिस्ट्रेट आदेश दे सकता है ।

Question 4. न्यूसेन्स हटाने का आदेश कौन से मजिस्ट्रेट को पारित करना चाहिये ?

A : जिला मजिस्ट्रेट , उप – खण्ड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट ऐसे आदेश पारित करने में सक्षम है ।

[ धारा 133 ]

Question 5. लोक न्यूसेंस के अस्तित्व से इनकार करने पर क्या कार्यवाही की जानी चाहिये ?

A : कार्यपालक मजिस्ट्रेट धारा 138 के अधीन कार्यवाही करने से पहिले जांच करेगा ।

[ धारा 137 ]

◾◾Chapter 10 & 11

लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखना + पुलिस का निवारक कार्य

Sec 144 से 153 तक

Question 1. न्यूसन्स या आशकित खतरे के आवश्यक मामलों के सम्बन्ध में कार्यवाही करने में कौन सक्षम है ?

A : जिला मजिस्ट्रेट (DM) , उपखण्ड मजिस्ट्रेट (SDM) अथवा प्राधिकृत अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट

[ धारा 144 ( 1 ) ]

Question 2. न्यूसेन्स या आशकित खतरे के आवश्यक मामलों के सम्बन्ध में धारा 144 दण्ड प्रक्रिया संहिता प्रयोग कब किया जा सकता है ?

A : ऐसे मामलों में पांच या अंधिक व्यक्तियों को विधि विरुद्ध कार्य करने से रोकने के लिए धारा 144 में वर्णित शक्तियों का प्रयोग किया जाता है ।

Question 3. धारा 144 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन दिये गये आदेश किस अवधि तक प्रवृत्त रहते है ?

A : ऐसे आदेश दो मास की अवधि तक प्रवृत्त होते है , जिसे विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा छः मास तक बढ़ा सकती है ।

[ धारा 144 ( 4 ) एवम् परन्तुक ]

Question 4. धारा 145 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन कार्यपालक मजिस्ट्रेट किसी विवाद में भूमि या जल से सम्बन्धित विवाद जिसमें परिशान्ति भंग होने की संभावना हो , किन बिन्दुओं पर अपना निर्णय दे सकता है ?

A :

◾विवादित विषय वस्तु पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश के दिवस या रिपोर्ट या इत्तिला के दो मास पूर्व से

◾किसका व किस प्रकार का कब्जा था बाबत् आदेश देगा ।

Question 5. जब मामला भूमि या जल सम्बन्धी विवादों से सम्बन्धित है जिसमें परिशान्ति भंग होना सम्भाव्य है , तो किन बिन्दुओं पर विधिक आदेश पारित करने हेतु कौन सशक्त है ?

A : ऐसे विवादों में कार्यपालक मजिस्ट्रेट लिखित आदेश करेगा कि आदेश के दिन अथवा रिपोर्ट या इत्तिला के दो मास पूर्व विवादित विषय – वस्तु पर किसका कब्जा था ।

[ धारा 145 ]

Question 6. अगर विवादित विषय – वस्तु पर किसी पक्षकार का कब्जा नहीं हो तो कौनसा अधिकारी सम्पत्ति की देखभाल के लिये क्या व्यवस्था कर सकता है ?

A : कार्यपालक मजिस्ट्रेट विवादित विषय वस्तु को कुर्क करने एवम् रिसीवर नियुक्त की कार्यवाही करने के लिए सशक्त है ।

[ धारा 146 ]

Question 7. भूमि या जल के उपयोग से सम्बन्धित मामलों का निबटारा करने के लिये कौन सशक्त है ?

A : स्थानीय अधिकारितायुत कार्यपालक मजिस्ट्रेट

[ धारा 147 ]

Question 8. संज्ञेय अपराधों का किया जाना कैसे रोका जा सकता है ?

A. पुलिस अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट के आदेश और बिना वारण्ट , संज्ञेय अपराधों को रोकने के लिये व्यक्ति की गिरफ्तारी कर सकता है ।

[ धारा 151 ]

Question 9. दण्ड प्रक्रिया संहित के अंतर्गत , बांटो और मापों का निरीक्षण और तलाशी कौन कर सकता है ।

A : बांटो और मापों के निरीक्षण व तलाशी करने का बिना वारण्ट के अधिकार , पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को प्राप्त है ।

[ धारा 153 ]

◾◾ Chapter 12

Chapter 12

पुलिस को इतला और उनकी अन्वेषण करने की शक्तियां

Sec 154 से 164 A तक

Question 1. क्या किसी प्रथम सूचना रिपोर्ट पर हस्ताक्षर अथवा निशान अंगुष्ठ करना आवश्यक है ?

A. प्रथम सूचना पर हस्ताक्षर अथवा निशान अगुष्ठ नहीं करने के समुचित स्पष्टिकरण के बिना यह निरस्तनीय है ।

[ धारा 154 ]

Question 2. जहां कोई मामला दो या अधिक अपराधों से सम्बन्धित है , जिनमें से एक अपराध संज्ञेय है , जबकि शेष असंज्ञेय है तो इसकी प्रथम सूचना कैसे दर्ज की जायेगी ?

A : ऐसी प्रथम सूचना के आधार पर , अन्वेषणकर्ता संज्ञेय अपराध का मामला दर्ज कर अनुसंधान आरम्भ करेगा ।

[ धारा 154 ]

Question 3. प्रथम सूचना रिपोर्ट की परिभाषा दीजियें ।

A : संज्ञेय अपराध के बारे में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक या लिखित इत्तला प्रथम सूचना कहलाती है ।

[ धारा 154 ]

Question 4. प्रथम सूचना दर्ज कराने में विलम्ब होने पर भी क्या कार्यवाही की जा सकती है ?

A : विलम्ब से प्राप्त प्रथम सूचना पर कार्यवाही तो की जा सकती है । लेकिन इसका संतोषजनक स्पष्टीकरण मजबूती प्रदान करता है ।

[ धारा 154 ]

Question 5. प्रथम सूचना लिखवाने वाला व्यक्ति इसकी प्रतिलिपि कितने दिवस में प्राप्त करने का अधिकारी है ?

A : अभिलिखित प्रथम सूचना की प्रतिलिपी सूचना देने वाले व्यक्ति को तत्काल निः शुल्क प्रदान की जायेगी ।

[ धारा 154 ]

Question 6. पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को असंज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर वह क्या कार्यवाही करेगा ?

A : थानाधिकारी इतला का सार पुस्तिका में इन्द्राज कर सूचना देने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा ।

[ धारा 155 ( 1 ) ]

Question 7. क्या अन्वेषण के दौरान एक पुलिस अधिकारी 15 वर्ष से कम आयु या स्त्री की हाजरी की अपेक्षा कर सकता है और क्या उनको बतौर गवाह तलब कर सकता है ?

A : 15 वर्ष से कम आयु के पुरूष से या स्त्री से , उसके निवास स्थान से भिन्न स्थान पर , हाजिर रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है । उनको बतौर गवाह तलब नहीं किया जा सकता है ।

[ धारा 160 ]

Question 8. क्या धारा 161 के बयान न्यायालय में याददाश्त ताजा करने के लिये काम में लाये जा सकते है ?

A : जी नहीं [ धारा 161 ]

Question 9. क्या पुलिस में लिये गये कथनों पर बयान देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर अथवा निशान अंगुष्ठ कराये जाने चाहिये ?

A : जी नहीं । [ धारा 162 ]

Question 10. धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन संस्वीकृति कौन अभिलिखित कर सकता है ?

A : कोई महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट , चाहे उसे मामलें में अधिकारिता हो हो , संस्वीकृति को अभिलिखित कर सकता है

◾◾Chapter 12

पुलिस को इतला और उनकी अन्वेषण करने की शक्तियां

Sec 165 से 170 तक

Question 1. भारत का दाण्डिक न्यायालय भारत से बाहर किसी अन्य देश के उस देश के सक्षम अधिकारी को साक्ष्य संगृहीत कर प्रेषित करने का अनुरोध – पत्र जारी कर सकता हैं यह कौन सी धारा में बताया गया है ?

A : [ धारा 166- A ]

Question 2. अभियुक्त के लिये अधिकतम कितनी अवधि तक का पुलिस रिमाण्ड दिया जा सकता है ?

A : पुलिस अभिरक्षा रिमाण्ड की अधिकतम अवधि पन्द्रह दिवस है ।

[ धारा 167 ]

Question 3. ऐसे अपराधों जिनमें दस वर्ष से न्यून के कारावास का प्रावधान है , उनमें कितनी अधिकतम अवधि के लिये निरोध प्राधिकृत किया जा सकता है ?

A : अधिकतम साठ दिवस

[ धारा 167 ]

Question 4. ऐसे अपराधों जिनमें मृत्युदण्ड , आजीवन कारावास अथवा दस वर्ष से कम कारावास का प्रावधान है , तो उनमें अधिकतम कितनी अवधि के लिये रिमाण्ड दिया जा सकता है ?

A : अधिकतम नब्बे दिवस

[ धारा 167 ]

Question 5. क्या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट रिमाण्ड हेतु सशक्त है ?

A : यदि द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट उच्च न्यायालय द्वारा प्राधिकृत है तो वह रिमाण्ड का आदेश दे सकता है ।

[ धारा 167 ]

Question 6. अपराध अन्तर्गत धारा 302 , भारतीय दण्ड संहिता के अभियुक्त की अभिरक्षा में 91 वां दिवस है फिर भी अन्वेषणकर्ता चालान प्रस्तुत नहीं कर सका था । अभियुक्त ने लंच के पूर्व न्यायालय में जमानत का आवेदन – पत्र प्रस्तुत कर जमानत व बन्ध – पत्र प्रस्तुत करने की निवेदन की थी ।

उसी दिन , लंच के पश्चात् अन्वेषणकर्ता ने चालान पेश कर दिया । क्या इन परिस्थितियों में जमानत का आवेदन – पत्र खारिज किया जाना चाहिये ?

A : नब्बे दिवस की अभिरक्षा की अवधि की समाप्ति के पश्चात् , न्यायालय के लिये अभियुक्त को जमानत पर छोड़ना आज्ञापक है ।

इन परिस्थितियों में , 90 दिन बाद चालान की प्रस्तुति पूर्णतया अप्रासंगिक है।-

(उदय मोहनलाल अचार्य बनाम महाराष्ट्र राज्य , AIR 2001 SCW 1500 )

[ धारा 167 ]

Question 7. समन मामले में अभियुक्त की गिरफ्तारी के छः मास की अवधि में अन्वेषण समाप्त नहीं होने पर मजिस्ट्रेट क्या कार्यवाही करने में सशक्त है ?

A : समन मामले में उपरोक्तानुसार अन्वेषण छः मास में समाप्त नहीं होने पर विशेष कारणों के अभाव में अपराध में आगे और अन्वेषण रोक सकता है ।

Question 8. कोई पुलिस अधिकारी किन परिस्थितियों में किसी अभियुक्त को संज्ञेय किन्तु अजमानतीय अपराध में गिरफ्तार करने के पश्चात् जमानत पर छोड़ सकता है ?

A : जब भारसाधक अधिकारी को अन्वेषण पर यह प्रतीत हो कि अभियुक्त के विरूद्ध पर्याप्त साक्ष्य या सन्देह का उचित आधार नहीं है ।

[ धारा 169 ]

◾◾Chapter 12

पुलिस को इतला और उनकी अन्वेषण करने की शक्तियां

Sec 171 से 176 तक

Question 1.अन्वेषण करते हुए पुलिस अधिकारी को अपनी डायरी कब लिखनी चाहिए

A : अन्वेषण के दौरान की जाने वाली हरेक कार्यवाही का दिन – प्रति – दिन डायरी में इन्द्राज किया जाना जरूरी है ।

[ धारा 172 ]

Question 2. पुलिस रिपोर्ट का क्या अभिप्राय है ?

A : पुलिस ऑफिसर द्वारा धारा 173 ( 2 ) , दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट को प्रेषित रिपोर्ट से अभिप्रेत है ।

[ धारा 173 ]

Question 3. अन्वेषण के पश्चात् , अन्वेषण की रिपोर्ट पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा किसे और क्यों प्रस्तुत या प्रेषित की जाती है ?

A : थानाधिकारी द्वारा अन्वेषण के पश्चात् अन्वेषण की रिपोर्ट सक्षम मजिस्ट्रेट को अपराध का प्रसंज्ञान लेने के लिये प्रेषित या प्रस्तुत की जाती है ।

[ धारा 173 ]

Question 4. पुलिस चालान या चालान से आप क्या समझते है ?

A : अन्वेषण समाप्त होने के पश्चात् , पुलिस थाना के भारसाधक अधिकारी द्वारा , जो पुलिस रिपोर्ट सक्षम मजिस्ट्रेट के समक्ष विहित प्रारूप में प्रेषित हो , उसे पुलिस चालान या चालान कहते है ।

[ धारा 173 ]

Question 5. किसी व्यक्ति की आत्महत्या , संदिग्ध मृत्यु , अप्राकृतिक मृत्यु अथवा दुर्घटना के बारे में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को क्या करना चाहिये ?

A : ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारी द्वारा जांच कर सक्षम कार्यपालक मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट प्रेषित करनी आवश्यक है ।

[ धारा 174 ]

Question 6. किसी व्यक्ति की आत्महत्या , संदिग्ध मृत्यु , अप्राकृतिक मृत्यु अथवा दुर्घटना से हुई मृत्यु- समीक्षा ( inquest ) किसके द्वारा की जा सकती हैं ?

A. उपरोक्त कारणों के परिणामस्वरूप मृत्यु की जांच सशक्त निकटतम कार्यपालक मजिस्ट्रेट , जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट द्वारा की जायेगी ।

[ धारा 174 ]

◾◾Chapter 13 जांचो और विचारणो में दंड न्यायालयो की अधिकारिता

Sec 177 से 189 तक

Question 1. न्यायालयों की स्थानीय अधिकारिता के सन्दर्भ में मूल सिद्धान्त अध्याय 13 की किस धारा में सन्निविष्ट किया गया है ?

A. धारा 177 में ।

Question 2. प्रत्येक अपराध की जांच और विचारण मामूली तौर पर किस न्यायालय द्वारा किया जायेगा ?

A. धारा 177 के अनुसार ऐसे न्यायालय द्वारा किया जायेगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर वह अपराध किया गया है ।

Question 3. एक अवयस्क लड़की जो अपने पिता के साथ इंदौर में रहती थी , अभियुक्त से प्रेम सम्बन्ध होने पर उसके कहने से टैक्सी से अभियुक्त के साथ भोपाल आती है । कुछ दिन बाद वह अभियुक्त के साथ मुम्बई में स्थायी तौर पर रहने लगती है । व्यपहरण के अपराध का विचारण कहां होगा ?

A. इन्दौर , भोपाल , मुंबई में से किसी भी एक स्थान पर ।

[ धारा 181(2) ]

Question 4. भारतीय दण्ड संहिता , 1860 की धारा 494 या धारा 495 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध की जांच या उनका विचारण किस न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा ?

A. दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 182 ( 2 ) के अनुसार- ऐसे न्यायालय द्वारा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर द्विविवाह का अपराध किया गया है , अथवा अपराधी ने प्रथम विवाह की अपनी पत्नी या पति के साथ अन्तिम बार निवास किया है , अथवा प्रथम विवाह की पत्नी ने अपराध कारित होने के पश्चात् स्थायी निवास ग्रहण कर लिया है ।

Question 5. जहां दो या अधिक न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान कर लेते हैं और प्रश्न उठता है कि दोनों में से किसे उस अपराध की जांच या विचारण करना चाहिए , तो वह प्रश्न किसके द्वारा विनिश्चित किया जायेगा ?

A.

( i ) यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ नहीं है , तो उस उच्च न्यायालय द्वारा

( ii ) यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है तो उस उच्च न्यायालय द्वारा ,
जिसकी अपीली दाण्डिक अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अन्दर कार्यवाही पहले प्रारम्भ की गयी है ।

विनिश्चित किया जायेगा ।

Question 6. स्थानीय अधिकारिता से परे किये गये किसी अपराध के लिए समन या वारण्ट जारी करने की शक्ति किसे हैं ?

A. धारा 187 के अनुसार प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को ।

◾◾Chapter 14

कार्यवाहीया शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्तें

Sec 190 से 199 तक

Question 1. अपराध का संज्ञान लेने हेतु कौन सशक्त है ?

A : अपराध का संज्ञान लेने की शक्तियां प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और विशेषतया सशक्त द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को प्राप्त है

[ धारा 190 ]

Question 2. किन – किन दशाओं में मजिस्ट्रेट को अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार है ?

A : पुलिस रिपोर्ट , परिवाद , पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इत्तला या स्वयं की जानकारी के आधार पर मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने में सशक्त है ।

[ धारा 190 ]

Question 3. क्या अभियुक्त को मजिस्ट्रेट द्वारा फाइनल रिपोर्ट पर की कार्यवाही में कोई भाग लेने का अधिकार है ?

A. अभियुक्त को फाइनल रिपोर्ट पर की जा रही जांच की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार , मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लिया जाने तक , नहीं है ।

[ धारा 190 ]

Question 4. क्या मजिस्ट्रेट फाइनल रिपोर्ट स्वीकार करने के लिये बाध्य है अथवा अस्वीकार कर सकता है ? .

A : मजिस्ट्रेट कारण सहित फाइनल रिपोर्ट को अस्वीकार कर सकता है , एवम् स्वयं संज्ञान ले सकता है ।

[ धारा 190 ]

Question 5. क्या सेशन न्यायालय आरम्भिक अधिकारिता वाले न्यायालय की भांति अपराध का सीधा संज्ञान ले सकता है ?

A : अभिव्यक्त विधिक प्रावधानों के सिवाय , सेशन न्यायालय सीधा संज्ञान तब तक नहीं ले सकता जब तक प्रकरण में सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा सेशन सुपुर्द नहीं कर दिया जाता है ।

[ धारा 193 ]

Question 6. क्या केवल परिवाद प्राप्त होने पर न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान ले सकता है . जो किसी लोक सेवक के विरूद्ध हो और ऐसे अपराध का अभियोग हो जिसके बारे में यह अभिकथित हो कि वह उसके द्वारा तब किया गया जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निवर्हन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था ? अगर नहीं , तो क्यों ?

A : ऐसे प्रकरणों में संज्ञान के लिये केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार , जैसा भी मामला हो , की पूर्व स्वीकृति ( Pervions Sanction ) अनिवार्य है ।

[ धारा 197 ]

Question 7. परिवाद क्या होता है ? किसी ऐसे एक अपराध का नाम बताइए जो केवल परिवाद के आधार पर ही अन्वीक्षित किया जा सकता है ।

A : मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही हेतु लिखित या मौखिक अभिकथन परिवाद कहलाता है ।

विवाह से सम्बन्धित अपराध केवल परिवाद के आधार पर ही अन्वीक्षित किये जा सकते है ।

[ धारा 198 सपठित अध्याय 20 , भा.द.सं. ]

◾◾Chapter 15

मजिस्ट्रेटो से परिवाद

Sec 200 से 203 तक

Question 1. मजिस्ट्रेट किसी अपराध का परिवाद प्राप्त करने पर क्या करेगा ?

A.

◾परिवादियों से अपने सब साक्षियों को पेश करने की अपेक्षा करेगा और उनकी शपथ पर परीक्षा करेगा

◾यदि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है , अनन्यतः सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है ।

( धारा 202 , परन्तुक ) ।

Question 2. यदि परिवाद लिखकर किया जाता है , तो किन परिस्थितियों में परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करना आवश्यक नहीं है ?

A. निम्नलिखित स्थितियों में

( a ) यदि परिवाद अपने पदीय कर्त्तव्यों के निर्वहन में कार्य करने वाले लोक सेवक या न्यायालय द्वारा किया गया है , अथवा

( b ) यदि मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के लिए मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है

( धारा 200 )

Question 3. यदि परिवाद किसी ऐसे मजिस्ट्रेट को किया जाता है , जो उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सक्षम नहीं है , तो वह क्या करेगा ?

A. धारा 201 के अनुसार ऐसी स्थिति में –

( 1 ) यदि परिवाद लिखित है तो वह उसको समुचित न्यायालय में पेश करने के लिए उस भाव का पृष्ठांकन करके लौटा देगा ;

( 2 ) यदि परिवाद लिखित नहीं है तो वह परिवादी को उचित न्यायालय में जाने का निर्देश देगा ।

Question 5. क्या प्रथम परिवाद खारिज किये जाने के बाद उसी विषय के बारे में द्वितीय परिवाद किया जा सकता है ?

A.

◾हां ! क्योंकि परिवाद का खारिज किया जाना , न तो उन्मोचन का आदेश है और न ही दोषमुक्ति का ,

◾किन्तु द्वितीय परिवाद तभी ग्रहण किया जा सकता है जबकि यह सिद्ध कर दिया जाय कि द्वितीय परिवाद के साथ पेश की गयी सामग्री पर्याप्त कारणों से प्रथम परिवाद के समय पेश नहीं की जा सकती थी और पेश की जाने वाली नयी सामग्री मामले को प्रथम दृष्टया सिद्ध करने में सहायक होगी ।

( सुखराज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य , 1982 इलाहाबाद )

◾◾Chapter 16

मजिस्ट्रेटो के समक्ष कार्यवाही का प्रारम्भ किया जाना

Sec 204 से 210 तक

Question 1. क्या मजिस्ट्रेट , अभियुक्त को उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति में अभिमुक्त करने में सशक्त है ?

A : मजिस्ट्रेट , अभियुक्त को व्यक्तिगत हाजरी से माफी दे सकता है व प्लीडर के द्वारा उपस्थित होने की आज्ञा प्रदान कर सकता है ।

[ धारा 205 ]

Question 2. दण्ड प्रक्रिया संहिता , 1973 की धारा 206 के खण्ड ( 2 ) के अंतर्गत ” छोटे अपराध ” से क्या अभिप्रेत है ?

A : दोषी होने के अभिवाक पर अभियुक्त की अनुपस्थिति में उसको सिद्धदोष किये जाने वाले अपराधों को छोड़ कर , एक हजार रूपयों से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय अपराध “छोटे अपराध” कहलाते हैं |

Question 3. क्या किसी अभियुक्त को स्वयं अथवा उसके अधिवक्ता ( असालतन या वकालतन ) की न्यायालय में उपस्थिति के बिना अर्थदण्ड की राशि भेजने के लिये आदेश जारी किया जा सकता है ?

A : केवल छोटे अपराधों में अभियुक्त द्वारा दोषी होने का लिखित अभिवचन के साथ अर्थदण्ड की राशि डाक अथवा संदेशवाहक की मार्फत भेजी जा सकती है ।

[ धारा 206 ]

Question 4. पुलिस रिपोर्ट / चालान एवम् उससे संलग्न दस्तावेज की प्रतिलिपियाँ अभियुक्त को दिलाये जाने के बारे में क्या प्रावधान है ?

A : पुलिस रिपोर्ट / चालान एवम् उससे संलग्न दस्तोवज की प्रतिलिपियाँ मजिस्ट्रेट अभियुक्त को अविलम्ब निः शुल्क देगा ।

[ धारा 207 ]

Question 5. क्या एक न्यायिक मजिस्ट्रेट मानव वध के मामले का विचारण कर सकता है ?

A. न्यायिक मजिस्ट्रेट मानव वध के मामले का विचारण करने के लिए सशक्त नहीं है । अतः उसे इस मामले को सेशन न्यायालय को सुपुर्द ( Commit ) कर देना चाहिये ।

[ धारा 209 ]

Question 6. जब एक ही घटना की प्रथम सूचना के आधार पर पुलिस कार्यवाही की जाती है और परिवाद के आधार पर भी न्यायालय में कार्यवाही की जाती है तो उस मामले का विचारण किस प्रकार किया जायेगा ?

A : ऐसे मामले का विचारण पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित मामले की भांति किया जायेगा ।

[ धारा 210 ( 2 ) ]

◾◾Chapter 17

आरोप

Sec 211 से 217 तक

Question 1. आरोप की अन्तर्वस्तु क्या होगी ?

A. धारा 211 के अनुसार –

( i ) प्रत्येक आरोप में उस अपराध का कथन होगा जिसका अभियुक्तइ पर आरोप है ,

( ii ) यदि अपराध का सृजन करने वाली विधि उस अपराध को कोई विनिर्दिष्ट नाम देती है तो आरोप में वही नाम उल्लिखित होगा ,

( iii ) यदि कोई विनिर्दिष्ट नाम नहीं देती , तो उस अपराध की इतनी परिभाषा देनी होगी । जितनी से अभियुक्त को उस बात की सूचना हो जाय जिसका उस पर आरोप है ,

( iv ) आरोप में विधि की वह धारा उल्लिखित होनी चाहिए , जिसके विरुद्ध अपराध किया जाना कथित है ,

( v ) यदि पहले किये गये अपराध के कारण अभियुक्त वर्धित दण्ड का भागी हो गया है तो पूर्व दोषसिद्धि का उल्लेख होगा ।

Question 2. यदि किसी आरोप में अपराध के वर्णन अथवा उसकी उल्लेख में कोई त्रुटि या लोप हो तो इसका क्या प्रभाव होगा ?

A : प्रश्नमगत गलती या लोप का तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ता जब तक कि उससे अभियुक्त वास्तव में भुलावे में नहीं पड़ गया और न्याय नहीं हो पाया ।

[ धारा 215 ]

Question 3. ‘ क ‘ पर 20 जनवरी , 1882 को हैदरबख्श की हत्या और 21 जनवरी , 1882 को खुदाबख्श की हत्या करने का आरोप है । जब वह हैदरबख्श की हत्या के लिए आरोपित हुआ तब उसका विचारण खुदाबख्श की हत्या के लिए हुआ । उसकी प्रतिरक्षा में उपस्थित साक्षी हैदरबख्श वाले मामले में साक्षी थे । इन तथ्यों से न्यायालय को क्या अनुमान करना चाहिए ?

A. न्यायालय को इन तथ्यों से यह अनुमान करना चाहिए कि ‘ क ‘ भुलावे में पड़ गया था और यह कि वह गलती तात्त्विक थी ।

Question 4. न्यायालय किस समय आरोप में परिर्वतन कर सकता है ?

A : न्यायालय द्वारा अपना निर्णय सुनाने के पूर्व किसी भी समय ।

Question 5. आरोप में परिवर्तन या परिवर्धन के बाद किस प्रक्रिया का अनुसरण किया जाना आवश्यक है ?

A. निम्न प्रक्रिया का-

( i ) यह कि ऐसा प्रत्येक परिवर्तन या परिवर्धन अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जायेगा ;

( ii ) यदि आरोप में किये गये परिवर्तन या परिवर्धन से न्यायालय की राय में अभियुक्त पर अपनी प्रतिरक्षा करने में या अभियोजन पर मामले के संचालन में कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना नहीं है , तो न्यायालय ऐसे परिवर्तन या परिवर्धन के पश्चात् विचारण को ऐसे आगे चला सकता है , मानो परिवर्तित या परिवर्धित आरोप ही मूल आरोप है ।

( iii ) यह कि यदि परिवर्तन या परिवर्धन ऐसा है कि न्यायालय की राय में उसके कारण अभियुक्त या अभियोजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा , तो न्यायालय या तो नये विचारण का निर्देश दे सकता है या उसे आवश्यकतानुसार आगे की किसी अवधि के लिए स्थगित कर सकता है ।

◾◾Chapter 17

आरोप

Sec 218 से 224 तक

Question 1. क्या तीन से अधिक आरोपों का एक साथ विचारण किया जा सकता है ?

A :

◾अभियुक्त के लिखित आवेदन पर और मजिस्ट्रेट की राय में उस पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने पर ,

◾मजिस्ट्रेट सभी या किन्हीं आरोपों का विचारण एक साथ कर सकता है ।

[ धारा 218 ]

Question 2. क्या अभियुक्त व्यक्ति द्वारा लिखित प्रार्थना पत्र देने पर उसे तीन से अधिक आरोपों के लिए एक साथ विचारित किया जा सकता है ?

A : जी हां ।

◾बारह मास में किये गये एक ही प्रकार के अधिकतम तीन अपराधों का एवं एक ही संव्यवहार व क्रम में अनेक अपराध

◾एक ही व्यक्ति द्वारा किये गये हो तो आरोप एक साथ लगाया जा सकता है ।

[ धारा 219 व 220 ]

Question 3. ” एक ही किस्म के अपराध ” से आप क्या समझते हैं ” ?

A.

◾अपराध एक ही किस्म के तब होते हैं जब वे भारतीय दण्ड संहिता या किसी विशेष या स्थानीय विधि की एक ही धारा के अधीन दण्ड की समान मात्रा से दण्डनीय होते हैं ।

◾परन्तु इसके प्रयोजन के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 379 और 380 के अधीन दण्ड तथा उसके प्रयत्न तथा दुष्प्रेरण हालांकि एक ही दण्ड से दण्डनीय नहीं है तो भी वे एक ही किस्म के अपराध समझे जायेंगे ।

[ धारा 219 ( 2 ) ]

Question 4. ‘ क ‘ दिन में गृहभेदन इस आशय से करता है कि जारकर्म करे और ऐसे प्रवेश किये गये गृह में ‘ ख ‘ की पत्नी के साथ जारकर्म करता है । ‘ क ‘ पर किस तरह आरोप लगाया जा सकेगा ?

A. ‘ क ‘ पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 454 और 497 के अधीन अपराधों के लिए पृथकतः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।

[ धारा 220 का दृष्टान्त ख ]

Question 5. वे कौन – से व्यक्ति हैं जिन पर संयुक्त रूप से आरोप लगाया जाकर उनका एक साथ विचारण किया जा सकेगा ?

A. धारा 223 के अनुसार-

( i ) वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार अनुक्रम में एक ही अपराध का अभियोग है ।

( ii ) वे व्यक्ति जिन पर किसी अपराध का अभियोग है , और वे भी जिन पर दुष्प्रेरण या प्रयत्न करने क अभियोग है ।

( iii ) वे व्यक्ति जिन पर 1 वर्ष के अन्तर्गत संयुक्त रूप से उनके द्वारा किये गये एक ही किस्म के एकाधिक अपराधों का अभियोग है ।

( iv ) वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में किये गये भिन्न अपराधों का अभियोग है ।

( v ) वे व्यक्ति जिन पर चोरी , उद्दापन , छल , आपराधिक दुर्विनियोग , और इनके प्रयत्न का दुष्प्रेरण का अभियोग है ।

( vi ) वे व्यक्ति जिन पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 411 कि एवं 414 के अधीन अपराध का अभियोग है ।

( vii ) वे जिन पर भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 12 के अन्तर्गत सिक्के के कूटकरण प्रयत्न एवं दुष्प्रेरण का अभियोग है ।

◾◾Chapter 18

सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण

Sec 225 से 237 तक

Question 1. दण्ड प्रक्रिया संहिता के किन धाराओं में सत्र न्यायालय के समक्ष विचारण की प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है ?

A. Q. धारा 225 से 237

Question 2. सेशन न्यायालय के समक्ष अभियोजन की ओर से विचारण का संचालन कौन कर सकता है ?

A : लोक अभियोजक ।

[ धारा 225 ]

Question 3. सेशन न्यायालय किस आधार पर अभियुक्त को उन्मोचित कर सकता है ?

A : अगर मामले के अभिलेख एवम् दस्तावेज पर गौर करने और अभियुक्त व अभियोजन की सुनवाई के पश्चात् , अभियुक्त के विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं हो ।

Question 4.

[ धारा 227 ]

Question 4. दण्ड प्रक्रिया संहिता में कितने प्रकार के विचारणों की व्यवस्था की गयी है ?

A. निम्नलिखित 4 प्रकार

( i ) सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण ,
( ii ) वारण्ट मामलों का विचारण ,
( iii ) समन मामलों का विचारण ,
( iv ) संक्षिप्त विचारणा

Question 5. सत्र विचारण में संहिता की किस धारा के अन्तर्गत अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा आरम्भ करता है ?

A. [ धारा 233 ]

Question 6. जब मामला सत्र न्यायालय द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को विचारण के लिए अन्तरित किया जाता है तो वह कौन – सी प्रक्रिया के अनुसार उसका विचारण करेगा ?

A. पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों के विचारण के लिए प्रक्रिया के अनुसार ।

( अर्थात् धारा 228 से लेकर 243 एवं 248 तक में )

◾◾Chapter 19

मजिस्ट्रेट द्वारा वारंट मामलों का विचारण

Sec 238 से 250 तक

Questions 1. दण्ड प्रक्रिया संहिता के किन धाराओं में वारण्ट मामले के विचारण की प्रक्रिया दी गयी है ?

A. धारा 238 से 250

Questions 2. एक अभियुक्त को मजिस्ट्रेट द्वारा कब उन्मोचित किया जा सकता हैं ?

A :

◾ पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किसी वारण्ट – मामले में ,

यदि धारा 173 , द.प्र.सं. के अधीन पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजे गये दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर और अभियुक्त की ऐसी परीक्षा , यदि कोई हो , जैसी मजिस्ट्रेट आवश्यक समझे , कर लेने पर और अभियोजन और अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात मजिस्ट्रेट अभियुक्त के विरूद्ध आरोप निराधार समझता है तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा और ऐसा करने के अपने कारण लेखबद्ध करेगा ।

◾पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किसी वारण्ट मामले में

यदि धारा 244 में निर्दिष्ट साक्ष्य लेने पर मजिस्ट्रेट का , उन कारणों से , जो लेखबद्ध किये जायेगे , यह विचार है कि अभियुक्त के विरुद्ध ऐसा कोई मामला सिद्ध नहीं हुआ है जो अखण्डित रहने पर उसकी दोषसिद्धि के लिये समुचित आधार हो तो मजिस्ट्रेट उसको उन्मोचित कर देगा ।

धारा 245 की कोई बात मजिस्ट्रेट को मामले के किसी पूर्वतन प्रक्रम में अभियुक्त को उस दशा में उन्मोचित करने से निवारित करने वाली नहीं समझी जायेगी जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे कारणों से , जो लेखबद्ध किये जायेंगे , यह विचार करता है कि आरोप निराधार है ।

[ धारा 239 व 245 , द.प्र.सं. , 1973 ]

Questions 3. एक मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241 दण्ड प्रक्रिया संहिता में साक्ष्य लिये बिना ही दोषसिद्धी कर सकता है । ऐसा वह कब कर सकता है ?

A : अभियुक्त द्वारा दोषी होने का अभिवाक ( कथन ) करने पर उसको दोषी सिद्ध किया जा सकता है ।

[ धारा 241 ]

Questions 4. परिवाद पर संस्थित वारण्ट मामले में परिवादी की अनुपस्थिति का क्या प्रभाव पड़ता है ?

A : परिवाद पर संस्थित वारण्ट मामले में परिवादी अनुपस्थित है और अपराध काबिल राजीनामा है या संज्ञेय अपराध नही है तो मजिस्ट्रेट , आरोप विरचित करने से पूर्व अभियुक्त को उन्मोचित कर सकता है ।

[ धारा 249 ]

Questions 5. बिना किसी उचित कारण के न्यायालय में अभियोजन दायर करने पर विपक्ष को क्या अनुतोष प्रदान किया जा सकता है ?

A : न्यायालय द्वारा विपक्ष को प्रतिकर दिलाया जा सकता है ।

[ धारा 250 ]

◾◾Chapter 20

मजिस्ट्रेट द्वारा समन मामलों का विचारण

Sec 251 से 259 तक

Question 1. मजिस्ट्रेट के द्वारा “समन मामलों के विचारण की प्रक्रिया” का के प्रथम चरण क्या होता है ?

A. अभियुक्त को अभियोग का सारांश बताया जाना । ( दारा 251 ) |

Question 2. दण्ड प्रक्रिया संहिता के किन धाराओं में समन मामलों के विचारण की प्रक्रिया विहित है ?

A. धारा 251 से 259

Question 3. न्यायहित में मजिस्ट्रेट के पास यह शक्ति है कि वह समन मामले का विचारण वारण्ट मामले की तरह कर सकता है , जिसमें उस मामले के अन्तर्गत जिस अपराध के लिए विचारण हो रहा है , वह किस दण्ड से दण्डनीय होना चाहिए ?

A. 6 माह से अधिक के कारावास से । ( धारा 259 )

Question 4. संहिता में समन मामले के विचारण में कौन – सी धारायें दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि से सम्बन्धित है ?

A. धारायें 252 एवं 253

Question 5. समन मामले में जब मजिस्ट्रेट अभियुक्त के दोषी होने के अभिवाक् पर उसे दोषसिद्ध नहीं करता है तो कौन – सी प्रक्रिया अपनाई जाती हैं ?

A. इस हेतु उपबन्ध संहिता की धारा 254 में व्यवस्थित है । ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट अभियोजन को सुनने के लिए और उसके सभी साक्ष्य , जो वह अपने समर्थन में पेश करें लेने के लिए और अभियुक्त को सुनने के लिए और ऐसा सब साक्ष्य , जो वह अपने बचाव में पेश करे , लेने के लिए अग्रसर होगा ।

Question 6. अभियुक्त की सुनवाई या हाजिरी के लिए नियत दिन यदि परिवादी हाजिर नहीं होता है तो मजिस्ट्रेट क्या करेगा ?

A. ऐसी परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा , जब तक कि वह अन्य किसी दिन के लिए मामले की सुनवाई स्थगित करना ठीक नहीं समझे ।

( धारा 256 )

Question 7. किसी अभियुक्त के विरुद्ध परिवाद वापस लिये जाने का प्रभाव क्या होता है ?

A. ऐसे अभियुक्त की दोषमुक्ति ( धारा 257 ) ।

Question 8. कोई न्यायिक मजिस्ट्रेट परिवाद से भिन्न आधार पर संस्थित किसी समन मामले में कार्यवाही ही किसी भी प्रक्रम में कोई निर्णय सुनाये बिना किसकी मंजूरी से रोक सकता है ?

A. किसी प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट अथवा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है ।
Chapter 21

◾◾संक्षिप्त विचारण

Sec 260 से 265 तक

Question 1. दंड प्रक्रिया संहिता में संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया किस अध्याय एवं किन धाराओं में बताई गई है ?

A. संक्षिप्त विचरण के बारे में अध्याय 21 तथा धारा 260 से 265 तक में बताया गया है |

Question 2. कितनी अवधि तक के कारावास के प्रकरणों में सक्षिप्त विचारण किया जा सकता है ?

A : ◾दो वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय मामलों में संक्षिप्त विचारण है ।

Question 3. संक्षिप्त विचारण में न्यायालय को कौनसी प्रक्रिया अपनानी चाहियें ? संक्षिप्त विचारण किसके द्वारा किया जा सकता है ?

A :

◾संक्षिप्त विचारण में दण्ड प्रक्रिया संहिता में “समन – मामलों” के विचारण हेतु विनिर्दिष्ट प्रक्रिया अपनायी जायेगी ।

◾संक्षिप्त विचारण कोई

( 1 ) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
( 2 ) महानगर मजिस्ट्रेट एवं
( 3 ) उच्च न्यायालय द्वारा विशेषतया सशक्त किया गया प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट कर सकता है ।

[ धारा 262 ( 1 ) व 260 ]

Question 4. संक्षिप्त विचारण में अधिकतम कितना दण्डादेश पारित किया जा सकता ?

A : अधिकतम तीन मास के कारावास का दण्डादेश ।

[ धारा 262 ( 2 ) ]

Question 5. एक संक्षिप्त विचारण में अभियुक्त के दोषी होने का अभिवचन नही करता मजिस्ट्रेट द्वारा अपने निर्णय में क्या अभिलिखित करना होगा ?

A.

◾संक्षिप्त विचारण में अभियुक्त के दोषी हाने का अभिवचन नहीं होने पर

◾मजिस्ट्रेट “साक्ष्य का सारांश” और “संक्षिप्त कारण युक्त निर्णय” लिखेगा ।

[ धारा 264 ]

◾◾Chapter 21 A

सौदा अभिवाक

Sec 265 A से 265 L तक

Question 1. कोई अभियुक्त अनुनय समझौते ( प्लीबारगेनिंग ) का आवेदन पत्र कहां दाखिल कर सकता है ?

A. उस न्यायालय में जहां ऐसा अपराध विचाराधीन है । ( धारा 265 – B ( 1 )

Question 2. दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 265 – क कितने दण्ड की अवधि पर लागू होती है ?

A. सात वर्ष ।

Question 3. अभिवचन का संपणन किन अपराधों पर लागू नहीं होगा ?

( i ) आर्थिक अपराध ,
( ii ) किसी स्त्री के विरुद्ध अपराध ,
( iii ) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे के विरुद्ध अपराध ।

( धारा 256 का परन्तुक )

Question 4. सौदा अभिवाक् के लिए आवेदन पत्र अस्वीकार हो जाने पर मजिस्ट्रेट क्या प्रक्रिया अपनायेगा ?

A. सम्बन्धित मजिस्ट्रेट आगे कार्यवाही करेगा ।

( धारा 265 – B )

Question 5. यदि मामला पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित है और उसमें सौदा अभिवाक् के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया है , तो मामले का सन्तोषप्रद निपटान के लिए आहूत बैठक में कौन कौन भाग ले सकता है ?

A. अभियुक्त , परिवादी और इन दोनों के अधिवक्ता

( धारा 265 – C )

Question 6. सौदा अभिवाक् के मामले का निस्तारण करते हुए न्यायालय न्यूनतम नियत दण्ड का कितना दण्ड दे सकता है ?

A. उक्त अपराध के लिए नियत दण्ड का आधा । अन्य मामलों में उपबंधित दण्ड का एक चौथाई ।

( धारा 265 – E )

Question 7. क्या अध्याय 21 A के अधीन पारित किसी दण्डादेश के विरुद्ध अपील किया जा सकता

A. नहीं ! किन्तु संविधान के अनुच्छेद 136/226/227 के अन्तर्गत याचिका प्रस्तुत किया जा सकता है ।

( धारा 265 – G )

◾◾Chapter 22

कारागारों में परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्तियों की हाजिरी

Sec 266 से 271 तक

इस अध्याय से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं बनते हैं जिस कारण आज आपको होमवर्क प्राप्त नहीं होगा

आपने इसे पढ़ लिया है वही पर्याप्त है

◾◾Chapter 23

जांचो और विचारणो में साक्ष्य

Sec 272 से 283 तक

Question. 1 दण्ड प्रक्रिया संहिता की कौन – सी धारा में “साक्ष्य को अभियुक्त उपस्थिति में लिये जाने” का उल्लेख किया गया है |

A. धारा 273

Question 2. सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण में साक्षियों का साक्ष्य कैसे लिखा जायेगा ?

A.

◾ऐसा साक्ष्य मामूली तौर पर वृत्तान्त के रूप में लिखा जायेगा

◾किन्तु पीठासीन न्यायाधीश अपने विवेक से ऐसे साक्ष्य या उसके किसी भाषा को प्रश्नोत्तर के रूप में लिख या लिखवा सकता है ।

( धारा 276 )

Question 3. संहिता की धारा 275 या 276 के अधीन “साक्षियों के साक्ष्य की भाषा” को कैसे लिखा जायेगा ?

A.

◾यदि साक्षी न्यायालय की भाषा में साक्ष्य देता है , जो उसे उसी भाषा में लिखा जायेगा ,

◾और यदि वह किसी अन्य भाषा में साक्ष्य देता है तो उसे यथासाध्य उसी की भाषा में लिखा जायेगा

◾और यदि साध्य न हो तो जैसे – जैसे साक्षी की परीक्षा होती जाती है वैसे – वैसे साक्ष्य का न्यायालय की भाषा में सही अनुवाद तैयार किया जायेगा और उस पर पीठासीन अधिकारी का हस्ताक्षर होगा ।

( धारा 277 )

Question 4. दण्ड प्रक्रिया संहिता की किस धारा के अन्तर्गत “साक्षी की भाव भंगिमा” को अभिलिखित करने का उपबंध है ?

A. धारा 280

Question 5. संहिता की किस धारा के अन्तर्गत दण्ड न्यायालय द्वारा “साक्ष्य या कथन के भाषान्तर के लिए दुभाषिये की अपेक्षा” की जाती है , जिसमें वह ठीक – ठीक भाषान्तर करने के लिए आबद्ध होगा ।

A. धारा 282 के अन्तर्गत ।

◾◾Chapter 23 जांचो और विचारणो में साक्ष्य

साक्षियो की परीक्षा के लिए कमीशन

Sec 284 से 299 तक

Question 1. संहिता की किन धाराओं तक में “साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने” और “उसके निष्पादन की प्रक्रिया” का उपबन्ध किया गया है ?

A. धारा 284 से लेकर 290 तक में ।

Question 2. किसी साक्षी को हाजिर होने से अभियुक्ति प्रदान करते हुए मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा कब कमीशन जारी किया जा सकता है ?

A.

◾जब कभी जांच , विचारण या अन्य कार्यवाही के अनुक्रम में न्यायालय या मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है कि न्याय के उद्देश्यों के लिए यह आवश्यक है कि किसी साक्षी की परीक्षा की जाये

◾और ऐसे साक्षी की हाजिरी इतने विलम्ब व्यय या असुविधा के बिना , जितनी मामले की परिस्थितियों को अनुचित होगी नहीं कराई जा सकती है ।

◾ तब साक्षी को हाजिर होने से अभियुक्ति प्रदान करते हुए मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा कमीशन जारी किया जा सकता है

Question 3. किन व्यक्तियों की साक्षी के रूप में परीक्षा करने के लिए न्याय के उद्देश्यों के लिए “कमीशन ही” जारी किया जायेगा ?

A. भारत के राष्ट्रपति , उपराष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल या संघ राज्य के प्रशासक ( धारा 284 )

Question 4. न्यायालय या मजिस्ट्रेट किसको कमीशन जारी कर सकता है ?

A : कमीशन उस महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्दिष्ट होगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर साक्षी मिल सकता है ।

[ धारा 285 ]

Question 5. उन प्राधिकारियों के नाम बताईये जिनके समक्ष शपथ – पत्रों पर शपथ दिलाई जा सकती है ?

A : न्यायाधीश , न्यायायिक मजिस्ट्रेट कार्यपालक मजिस्ट्रेट , शपथ – आयुक्त एवम् नोटेरी के समक्ष शपथ – पत्रों पर शपथ दिलायी जा सकती है

[ धारा 297 ]

Question 6. पूर्व दोषसिद्धी को किस प्रकार से साबित किया जाता है ?

A : निणर्य , आदेश या दण्डादेश की प्रमाणित प्रतिलिपि अथवा सजा भुगतने का प्रमाण – पत्र या सजा वारण्ट न्यायालय में प्रस्तुत करके ।

[ धारा 298 ]

Question 7. किसी जांच या विचारण में किस स्थिति में शपथ – पत्र द्वारा साक्ष्य दिया जा सकता है ?

A : जब जांच , विचारण या अन्य कार्यवाही के दौरान किसी आवेदन में लोक सेवक के बारे में अभिकथन किये जाते है ।

[ धारा 295 ]

Question 8. क्या अभियुक्त की अनुपास्थिति में अभिलिखित किया गया बयान उसके विरूद्ध साक्ष्य में ग्राहा है ?

A : यदि अभियुक्त फरार ( absconded ) है तो उसकी अनुपस्थिति में लिया गया बयान उसके विरूद्ध साक्ष्य में ग्राहृा है ।

[ धारा 299 ]

◾◾Chapter 24 जांचो और विचारणो के बारे में साधारण उपबंध

Sec 300 से 315 तक

Question 1. ‘ अ ‘ का विचारण घोर उपहति कारित करने के लिये किया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । तत्पश्चात् आहत व्यक्ति मर जाता है । क्या ‘ अ ‘ का विचारण आपराधिक मानव – वध के लिए पुनः किया जा सकता है ?

A : ‘ अ ‘ का पुनः विचारण आपराधिक मानव – वध के लिये किया जा सकेगा क्योंकि घोर उपहति कारित करने का अपराध आपराधिक मानव – वध से भिन्न अपराध है

[ धारा 300 ( 3 ) ]

Question 2. क्या परिवादी का अभिभाषक उसकी ओर से न्यायालय में सरकारी केस में अतिम बहस करने में विधितः सक्षम है ?

A. सरकारी केस में परिवादी का अभिभाषक सहायक लोक अभियोजक की अनुज्ञा से ही न्यायालय के समक्ष अंतिम बहस कर सकता है ।

[ धारा 302 ]

Question 3. क्या सह – अपराधी क्षमादान प्राप्त कर सकता है ?

A. अपराध बाबत् पूर्ण व सत्य प्रकट करने की शर्त पर सह – अपराधी को क्षमादान प्राप्त हो सकता है ।

[ धारा 306 ( 1 ) ]

Question 4. सेशन न्यायालय के समक्ष अभियुक्त के पास वकील नियुक्त करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है । ऐसी दशा में सेशन न्यायाधीश को क्या करना चाहिये ?

A. अभियुक्त को राज्य के व्यय पर न्यायालय द्वारा वकील उपलब्ध कराना चाहिये । [ धारा 304 ]

Question 5. सह – अपराधी को क्षमादान का निर्देश देने हेतु कौन सशक्त है ?

A. वह न्यायालय जहां मामला सुपुर्द किया जाता है ।

[ धारा 307 ]

Question 6. क्षमादान की शर्तों का उल्लंघन करने पर सह – अपराधी के विरूद्ध क्या कार्यवाही की जा सकती है ?

A : क्षमादान की शर्तों का उल्लंघन करने पर विचारण उस अपराध के लिये होगा , जिसमें उसको क्षमादान प्रदान किया गया था ।

[ धारा 308 ]

Question 7. किसके द्वारा किन परिस्थितियों में स्थानीय निरीक्षण किया जा सकता है ?

A : जांच या विचारण में दिये गये साक्ष्य का उचित विवेचन के प्रयोजन से न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा स्थानीय निरिक्षण किया जा सकता है ।

[ धारा 310 ]

Question 8. क्या एक बार साक्ष्य अभियोजन बन्द करने के एवम् अभियुक्त का कथन होने के पश्चात् अभियोजन किसी के साक्षी को अथवा पूर्व परिक्षित साक्षी बुलाया जाना सम्भव है ?

A : यदि न्याय संगत विनिश्चिय के लिये आवश्यक हो तो किसी साक्षी एवम् पूर्व परीक्षित साक्षी को पुनः बुलाया जा सकता है ।

[ धारा 311 ]

Question 9. क्या अभियुक्त अपना कथन सशपथ अभिलिखित करवा सकता है ?

A. अभियुक्त की लिखित प्रार्थना पर समक्ष साक्षी के रूप में , उसका सशपथ कथन अभिलिखित किया जा सकता है । धारा 315 ]

Question 10. अभियुक्त को अपनी प्रतिरक्षा प्रस्तुत करने का अवसर विधितः कब प्राप्त होता है ?

S : अभियोजन की साक्ष्य तथा अभियुक्त का कथन हो जाने के पश्चात् ।

[ धारा 313 व 315 ]

◾◾Chapter 24 जांचो और विचारणो के बारे में साधारण उपबंध

Sec 316 से 327 तक

Question 1. क्या धारा 379 भारतीय दण्ड संहिता अंतर्गत किये गये चोरी के अपराध में शमन किया जा सकता है ?

A :

◾जिस व्यक्ति के साथ धारा 379 भारतीय दण्ड संहिता का अपराध किया गया है , वह न्यायालय की अनुज्ञा से शमन कर सकता है ,

◾जहां चुरायी गयी सम्पत्ति का मूल्य रू . 2000 से अधिक नहीं है

[ धारा 320 ]

Question 2. क . एक अभियुक्त , पूर्व दोषसिद्धि के कारण , वर्धित दण्ड से दण्डनीय हैं । क्या उसके इस अपराध का शमन किया जा सकता हैं ?

A. यदि अभियुक्त पूर्व दोषसिद्धि के कारण वर्धित दण्ड से दण्डनीय हैं तो ऐसे अपराध का शमन नहीं किया जायेगा ।

[ धारा 320 ( 7 ) ]

Question 3. आवारा साण्ड , जिसका कोई स्वामी या प्रबंधक नहीं है , उसको विंकलाग करके रिष्टि ‘ क ‘ नामक एक सीटी बस ड्राइवर द्वारा अपनी बस को तेजी , गफलत और लापरवाही से चला कर की गयी है तो शमन करने में कौन सक्षम है ?

A. उक्त आवारा साण्ड के स्वामी के अभाव में कोई भी व्यक्ति शमन नहीं कर सकता है ।

[ धारा 320 ]

Question 4. ‘ ए ‘ ने अपनी पत्नी के जीवन काल में दूसरा विवाह कर लिया । ‘ ए ‘ के विरूद्ध मुकदमा चला । क्या इस अपराध के सम्बन्ध में राजीनामा किया जा सकता है ?

A. ‘ ए ‘ की पत्नी न्यायालय की अनुमति से राजीनामा करने में सक्षम है ।

[ धारा 320 ]

Question 5. क्या स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के अपराध का शमन किया जा सकता है

A. खतरनाक आयुधों से कारित स्वेच्छया घोर उपहति को छोड़कर , न्यायालय की अनुज्ञा से , अपराध का शमन किया जा सकता है ।

[ धारा 320 ]

Question 6. क्या धारा 417 भा.दं.सं. के अंतर्गत किया गया अपराध शमन किया जा सकता है ? यदि हां तो किन परिस्थितियों में ?

A. जिस व्यक्ति से छल किया गया है , वह न्यायालय की अनुज्ञा से , अपराध का शमन कर सकता है ।

[ धारा 320 ]

Question .7 ‘ अ ‘ , ‘ ब ‘ के विरूद्ध मानहानि का अपराध करता है तथा उसका विचारण भारतीय दण्ड संहिता की धारा 501 के अंतर्गत किया जाता है । विचारण के दौरान ‘ ब ‘ की मृत्यु हो जाती है । ‘ अ ‘ अपराध का शमन करना चाहता । क्या यह सम्भव है ? यदि हो तो कैसे ?

A. मृतक ‘ ब ‘ के विधिक प्रतिनिधि के द्वारा से एवम् न्यायालय की सम्मति से , मानहानि के अपराध का शमन किया जा सकता है ।

[ धारा 320 ]

Question .8 क्या आपराधिक न्यासभंग से सम्बन्धित अपराध में शमन किया जा सकता है ?

A : न्यायालय की अनुमति से , आपराधिक न्यास भंग की सम्पत्ति का मूल्य रू 2000 / से अधिक नहीं होने पर शमन किया जा सकता है ।

[ धारा 320 ]

Question .9 जब किसी प्रकरण में मजिस्ट्रेट की राय है कि वह पर्याप्त कठोर दण्डादेश नहीं दे सकता तब वह क्या करने में सक्षम है ?

A : तब मजिस्ट्रेट अपनी अभिलिखित राय के साथ कार्यवाही एवम् अभियुक्त को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा ।

[ धारा 325 ]

◾◾Chapter 25 विकृतचित्त अभियुक्त व्यक्तियों के बारे में उपबंध

Sec 328 से 339 तक

Question 1. किसी पागल व्यक्ति को कब निर्मुक्त किया जा सकता है ?

A. जब न्यायालय या मजिस्ट्रेट यह समझे कि वह धारा 328 या 329 के अधीन अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है । ( धारा 330 ( 1 )

Question 2. किसी चित्तविकृत व्यक्ति को अन्वेषण या विचारण लम्बित रहने के दौरान किस धारा के अन्तर्गत उन्मोचित किया जा सकता है ?

A. धारा 330

Question 3. जब कोई मजिस्ट्रेट या न्यायालय किसी व्यक्ति को विकृत चित्तता के आधार पर दोषमुक्त करता है और उस व्यक्ति को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौंपने का आदेश देता है , तो ऐसा आदेश किन शर्तों की पूर्ति कर दिया जायेगा ?

A. ऐसा आदेश , ऐसे नातेदार या मित्र के आवेदन पर ही किया जायेगा ; और नातेदार या मित्र द्वारा निम्नलिखित बातों की बाबत न्यायालय को समाधानप्रद प्रतिभूति दिये जाने पर ही किया जायेगा , अन्यथा नहीं-

( i ) यह कि ऐसे व्यक्ति की समुचित देखरेख की जायेगी और वह स्वयं अपने को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुँचाने से निवारित रखा जायेगा

( ii ) जब और जहां राज्य सरकार निर्दिष्ट करे ऐसा व्यक्ति निरीक्षण के लिए पेश किया जायेगा ।

( धारा 335 ( 3 )

Question 4. पागल व्यक्ति जिस जेल में निरुद्ध है , राज्य सरकार , उस जेल के भारसाधक अधिकारी को किसकी सब या उनमें से कोई शक्तियाँ प्रदान कर सकता है ?

A. कारागारों के महानिरीक्षक की जो उसे धारा 337 या 338 में उपबन्धित है ।

( धारा 336 )

Question 5. यदि राज्य सरकार व्यक्ति को लोक पागलखाने , को अन्तरित किये जाने का आदेश देती है तो क्या प्रक्रिया अपनायी जायेगी ?

A. ऐसी स्थिति में राज्य सरकार एक न्यायिक और दो चिकित्सक अधिकारियों का एक आयोग नियुक्त कर सकती है ।

( धारा 338 )

◾◾Chapter 26 न्याय प्रशासन पर प्रभाव डालने वाले अपराधो के बारे में उपबन्ध

Sec 340 से 352 तक

Question 1. जान – बूझ कर मिथ्या साक्ष्य देने वाले किसी साक्षी के विरूद्ध मजिस्ट्रेट अथवा सेशन न्यायाधीश क्या प्रक्रिया अपनाने में सशक्त है ?

A : संक्षिप्त विचारणों हेतु निर्धारित प्रक्रिया ।

[ धारा 344 ]

Question 2. साक्षी द्वारा मिथ्या साक्ष्य देने पर मजिस्ट्रेट अथवा सेशन न्यायालय द्वारा जो संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया अपनाई जाती है , उसमें कितने दण्डादेश का प्रावधान है ?

A : तीन माह तक के कारावास या पांच सौ रूपये तक का जुर्माना या दोनो ।

[ धारा 344 ]

Question 3. यदि मिथ्या साक्ष्य देने वाले साक्षी के विरूद्ध सेशन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया नहीं अपनाने की स्थिति में उसके पास अन्य क्या विकल्प है ?

A : सक्षम न्यायलय में परिवाद पेश करने का विकल्प । [ धारा 344 ]

Question 4. न्यायालय की दृष्टिगोचरता या उपस्थिति में अवमानना करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध क्या प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिये ?

A : न्यायालय अभियुक्त को अभिरक्षा में निरूद्ध कर , उसी दिन न्यायालय उठने से पूर्व संज्ञान लेकर कारण पूछा जायेगा कि क्यों न उसको दण्डित किया जाय ।

[ धारा 345 ]

Question 5. धारा 345 दण्ड प्रक्रिया सहिता के अतंर्गत दाण्डिक , सिविल या राजस्व न्यायालय की अवमानना के मामले में कारावास व जुर्माना बाबत् क्या प्रावधान है ?

A : रू 200 / – तक जुर्माना और इसके व्यक्तिक्रम में एक मास तक का साधारण कारावास

[ धारा 345 ]

Question 6. क्या सक्षम न्यायालय के अवमानना के मामले में अपराधी द्वारा क्षमा याचना करने पर न्यायालय को उसे उन्मोचित करने का अधिकार प्राप्त है ? –

A : जी हां । [ धारा 348 ]

Question 7. जब कोई साक्षी उस पर हुई तामील के बावजूद अनुपस्थित रहता है तब उसके विरूद्ध न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा कौन – सी प्रक्रिया अपनायी जाती है ? तथा ऐसे अपराध हेतु अधिकतम कितना जुर्माना किया जा सकता है |

A :

◾ऐसे मामले में , दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 350 के अंतर्गत संक्षेप्तः विचारण करना विधिसंगत है

◾तथा ऐसे मामले में अधिकतम रू 100 / – तक का जुर्माना किया जा सकता – है ।

[ धारा 350 ]

◾◾Chapter 27 निर्णय

Sec 353 से 365 तक

Question 1. निर्णय कौन – सी भाषा में लिखा जाना चाहिये ?

A : निर्णय को न्यायालय की भाषा में लिखा जाना चाहिये ।
[ धारा 354 ]

Question 2. मृत्युदण्ड के सम्बन्ध में किस प्रकार के निर्देश देने का प्रावधान है ?

A : मृत्यु दण्ड के सम्बन्ध में निर्देश होगा कि अभियुक्त को गर्दन में फांसी लगा कर तब तक लटकाया जाये जब तक उसकी मृत्यु न हो जाय ।

[ धारा 354 ( 5 ) ]

Question 3. क्या न्यायालय क्षतिग्रस्त व्यक्ति अथवा अभियोजन पक्ष को प्रतिकार दिलवाने हेतु सक्षम है ?

A : जी हां [ धारा 357 ]

Question 4. यदि किसी अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 325 और 323 के अंतर्गत दोषसिद्ध किया जाता है तो क्या यह आवश्यक है कि अपराधी परिवीक्षा अधिनियम , 1958 के अधीन परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट परिवीक्षा का लाभ देने से पूर्व मंगाई जाए ?

A : हालांकि परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट मंगवाना आवश्यक नहीं है , लेकिन रिपोर्ट आ जाने की दशा में उस पर विचार किया जाना चाहिये ।

[ धारा 360 ]

Question 5. क्या न्यायालय स्वयं के हस्ताक्षरित निर्णय का पुनर्विलोकन या परिवर्तन करने में सक्षम है ?

A : लिपिकीय या गणितीय भूल के अतिरिक्त अन्य किसी भी दशा में पुनर्विलोकन या परिवर्तन सम्भव नहीं है

[ धारा 362 ]

Question 6. क्या अभियुक्त को बिना फीस दिए निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि मिल सकती है ? क्या किसी अन्य व्यक्ति को भी ऐसा अधिकार है ?

A. अभियुक्त को कारावास का दण्डादेश सुनाये जाने के पश्चात् उसे निर्णय की एक प्रति निः शुल्क दी जायगी । विशेष परिस्थितियों में अन्य प्रभावित व्यक्ति को भी निर्णय की प्रति बिना फीस मिल सकती है

[ धारा 363 ]

◾◾Chapter 28 मृत्युदंड आदेशों की पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया जाना

Sec 366 से 371 तक

Question 1. मृत्यु दण्डादेशों की पुष्टि के सम्बन्ध में उपबन्ध संहिता की किन धाराओं में निहित है ?
A.

◾अध्याय 28 के
◾धारा 366 से 371 तक में ।

Question 2. संहिता की धारा 366 क्या कथन करती है ?

A. इस धारा के अनुसार –

◾जब सेशन न्यायालय मृत्यु दण्डादेश देता है , तब कार्यवाही उच्च न्यायालय को प्रस्तुत की जायेगी

◾और दण्डादेश तब तक निष्पादित न किया जायेगा , जब तक वह उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट न कर दिया जाय ।

Question 3. संहिता की धारा 367 के अन्तर्गत उच्च न्यायालय को दण्डादेश की पुष्टि के सम्बन्ध में क्या शक्तियाँ दी गयी हैं ?

A.

◾यदि उच्च न्यायालय चाहे तो अतिरिक्त जांच कर या साक्ष्य ले सकता

◾ या सेशन न्यायालय को ऐसा करने का आदेश दे सकता है ।

Question 3. संहिता की किस धारा के अन्तर्गत सेशन न्यायालय द्वारा दिये गये मृत्यु दण्डादेश को पुष्ट करने या दोषसिद्धि को साबित करने की उच्च न्यायालय को शक्ति दी गयी है ?

A. धारा 368 के अंतर्गत

Question 4. उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत मृत्यु दण्डादेश का पुष्टिकरण या उसके द्वारा पारित किसी नये दण्डादेश या आदेश को कम – से – कम कितने न्यायाधीशों द्वारा पारित या हस्ताक्षरित किया जाना चाहिए ?

A. कम – से – कम दो न्यायाधीशों द्वारा ।

( धारा 369 )

Question 5. जहां न्यायाधीश राय के बारे में समान रूप से विभाजित है , वहां मामला कैसे विनिश्चित किया जायेगा ?

A.

◾ऐसी स्थिति में मामला संहिता की धारा 392 द्वारा उपबन्धित रीति से विनिश्चय किया जायेगा ,

◾जिनमें व्यवस्था है कि मामला उनकी रायों सहित उसी न्यायालय के किसी उच्च न्यायाधीश के समक्ष रखा जायेगा

◾और ऐसा न्यायाधीश ऐसी सुनवाई के पश्चात् जैसे वह ठीक समझे , अपनी राय देगा , और निर्णय या आदेश ऐसी राय के अनुसार होगा ।

◾◾Chapter 29 अपीले

Sec 372 से 382 तक

Question 1. कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश अंतर्गत धारा 117 एवम् 121 , दण्ड प्रक्रिया संहिता के विरूद्ध अपील कहा पर दायर की जा सकती है ?

A : सेशन न्यायाधीश के समक्ष

[ धारा 373 ]

Question 2. अपर सेशन न्यायालय के दोषसिद्धि के निर्णय के विरूद्ध अपील कहां दायर की जायेगी ?

A : अपील उच्च न्यायालय में होगी ।

[ धारा 374 ]

Question 3. प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट के द्वारा दोषसिद्धी के निर्णय के विरूद्ध अपील किस न्यायालय के समक्ष की जायेगी ?

A : सेशन न्यायालय के समक्ष

[ धारा 374 ]

Question 4. जब सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा 5 वर्ष के सश्रम कारावास का दण्डादेश पारित किया गया हो तब उसकी अपील कहां होगी ?

A : सेशन न्यायायल में

[ धारा 374 ]

Question 5. यदि उच्च न्यायालय द्वारा असाधारण आरम्भिक दाण्डिक अधिकारिता के अंतर्गत अभियुक्त को सिद्धदोष किया गया है तो अपील कहा संस्थित की जायगी ?

A : उच्च न्यायालय में

[ धारा 374 ]

Question 6. यदि अभियुक्त द्वारा दोषी होने का अभिवचन करने पर उसे उच्च न्यायालय द्वारा सिद्धदोष किया जाता है तो अपील कहां संस्थित की जायेगी ?

A : ऐसे मामलें में अपील नहीं की जा सकती है ।

[ धारा 375 ]

Question 7. यदि उच्च न्यायालय द्वारा छः मास का कारावास और एक हजार रूपये का जुर्माना किया गया है तो अपील कहां पर संस्थित की जायेगी ?

A : ऐसे मामले में अपील नहीं हो सकती है ।

[ धारा 376 ]

Question 8. क्या राज्य सरकार दोषमुक्ति के विरूद्ध अपील दायर कर सकती है ?

A : जी हां ।

[ धारा 378 ]

Question 9. क्या राज्य सरकार दोषमुक्ति के आदेश के विरूद्ध अपील कर सकती हैं ?

A :

◾राज्य सरकार किसी मामले में लोक अभियोजक को उच्च न्यायालय में भिन्न किसी न्यायालय द्वारा पारित दोषमुक्ति के मूल या अपीली आदेश से

( जो दोषमुक्ति का आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा पारित नहीं किया गया है और ऐसे दोषमुक्ति के मजिस्ट्रेट के आदेश के विरुद्ध सेशन न्यायालय में अपील करने का लोक अभियोजक को निर्देश दे सकने हेतु जिला मजिस्ट्रेट को सशक्त किया गया है )

◾या पुनरीक्षण में सेशन न्यायालय द्वारा पारित दोषमुक्ति के आदेश से उच्च न्यायालय में अपील प्रस्तुत करने का निर्देश दे सकेगी ।

◾ राज्य सरकार सेशन न्यायालय , अपर सेशन न्यायालय और सहायक सेशन न्यायालय द्वारा दिये गये दोषमुक्ति के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील करने का निर्देश दे सकेगी ।

[ धारा 378 ]

Question 10. जब उच्च न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति के आदेश को उलटने हुए आजीवन कारावास से दाण्डित किया गया है तब अपील कहां पर दायर की जायेगी ?

A : उच्चतम न्यायालय में

[ धारा 379 ]

◾◾Chapter 29 अपीले

Sec 383 से 394 तक

Question 1. अपीलार्थी के जेल में होने की स्थिति में अपील कैसे की जा सकेगी ?

A. वह अपने अपील की अर्जी एवं समुचित प्रतिलिपियाँ जेल के भारसाधक अधिकारी को दे सकता है और तब वह ऐसी अर्जी एवं प्रतिलिपियाँ समुचित अपील न्यायालय को भेजेगा ।

( धारा 383 )

Question 2. अपील न्यायालय अपील को कब संक्षेपतः खारिज कर सकता है ?

A.

◾अपील की अर्जी एवं निर्णय की प्रतिलिपि इत्यादि पर विराचोपरान्त

◾जब अपीलीय न्यायालय का यह विचार है कि हस्तक्षेप करने का कोई पर्याप्त आधार नहीं है ।

( धारा 384 )

Question 3. संहिता की धारा 384 के अधीन अपील को संक्षेपतः खारिज करने वाले कौन से अपील न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेंगे ?

A. सेशन न्यायालय या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट – धारा 384 ( 3 )

Question 4. जब अपील को संक्षेपतः खारिज नहीं किया गया है और उसको स्वीकार कर लिया गया है तो क्या प्रक्रिया अपनायी जायेगी ?

A. इस तरह की स्थिति में अपील न्यायालय उस समय और स्थान की जब और जहां अपील सुनी जायेगी , सूचना

( i ) अपीलार्थी या उसके प्लीडर को ,

( ii ) ऐसे अधिकारी को जिसे राज्य सरकार इस हेतु नियुक्त करे ,

( iii ) यदि परिवाद पर संस्थित मामले में दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील की गयी है तो परिवादी को ,

( iv ) दण्ड की अपर्याप्तता या दोषमुक्ति के विरुद्ध की गयी है । तो अभियुक्त को , दिलवायेगा और ऐसे अधिकारी परिवादी और अभियुक्त को अपील के आधारों की प्रतिलिपि देगा ।

( धारा 385 )

Question 5. दोषमुक्ति एवं दोषसिद्धि के आदेश के विरुद्ध अपील में अपील न्यायालय की शक्तियाँ क्या हैं ?

A. ◾दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील में

( क ) आदेश को उलट सकता है और निदेश दे सकता है कि अतिरिक्त जांच की जाये अथवा अभियुक्त यथास्थिति पुनः विचारित किया जाय या विचारार्थ सुपुर्द किया जाये , अथवा

( ख ) उसे दोषी ठहराकर विधि अनुसार दण्डादेश दे सकता है ।

  • धारा 386 ( क )

◾दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील में

( i ) निष्कर्ष और दण्डादेश को उलट सकता है और अभियुक्त को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकता है या अपने मातहत् के सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा उसके पुनः विचारित किये जाने या विचारणार्थ सुपुर्द किये जाने का आदेश दे सकता है , अथवा

( ii ) दण्डादेश को कायम रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है , अथवा

( iii ) निष्कर्ष में परिवर्तन करके या किये बिना दण्ड के स्वरूप या परिमाण में अथवा स्वरूप और परिमाण में परिवर्तन कर सकता है ।

  • धारा 386 ( ख )

Question 6. जहां अपील , दोषसिद्धि और मृत्यु के या कारावास के दण्डादेश विरुद्ध है और लम्बित रहने के दौरान अपीलार्थी की मृत्यु हो जाती है , वहां अपील जारी रखने की इजाजत के लिए आवेदन कौन और कहां कर सकता है ?

A. अपीलार्थी का कोई भी निकट नातेदार ( माता – पिता , पति पत्नी , पारम्परिक वंशज , भाई या बहन ) अपील न्यायालय में आवेदन कर सकता है ।

( धारा 394 ( 2 ) का परन्तुक )

Question 7. किन अपीलों का अभियुक्त की मृत्यु पर अन्तिम रूप से उपशमन हो जायेगा ?

A. दण्डादेश की अपर्याप्तता के विरुद्ध या जो दोषमुक्ति के विरुद्ध की गयी है , अपील अभियुक्त की मृत्यु पर अन्तिम रूप से उपशमन हो जायेगा ।

( धारा 394 ( 1 )

◾◾Chapter 30 निर्देश और पुनरीक्षण

Sec 395 से 405 तक

Question 1. जब सत्र न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय अपनी अधिकारिता के अधीन के किसी अवर न्यायालय के समक्ष की किसी कार्यवाही के अभिलेख को परीक्षण करने हेतु मंगाता है तो उसे क्या कहते हैं ?

A. पुनरीक्षण ( धारा 397 )

Question 2. किस तरह के मामलों में न्यायालय उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देश कर सकता है ?

A :

◾जहाँ किसी न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लम्बित मामले में किसी अधिनियम , अध्यादेश या विनियम की अथवा किसी अधिनियम , अध्यादेश या विनियम में ‘ अर्न्तविष्ट किसी उपबन्ध की विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है ,

◾जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है , और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम , अध्यादेश , विनियम या उपबंध अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील है ।

👉 किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा , जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है ,
👉 या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है , वहाँ न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को उल्लिखित करते हुए मामले का कथन तैयार करेगा और उसे उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा । [ धारा 395 ]

Question 3. उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण अधिकारिता किस प्रकार की है ?

A.

◾उच्च न्यायालय ( या सेशन न्यायालय ) अपनी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर स्थित किसी अवर ( inferior ) दण्ड न्यायालय के समक्ष की किसी कार्यवाही के अभिलेख को ,

◾किसी अभिलिखित या पारित किये गये निष्कर्ष , दण्डादेश या आदेश की शुद्धता , वैधता या औचित्य के बारे में और कार्यवाहियों की नियमितता के बारे में अपना समाधान करने हेतु , मंगा सकता है और परीक्षा कर सकता है ।

👉 परन्तु पुनरीक्षण न्यायालय दोषमुक्ति के विनिश्चय को सिद्धदोषी में संपरिवर्तित नहीं कर सकता है । ऐसा न्यायालय धारा 386 , 389 , 390 व 391 में उपबंधित शक्तियों का प्रयोग स्वविवेकानुसार कर सकता है ।

[ धारा 397 व 401 ]

Question 4. पुनरीक्षण के मामलों को लेने या अन्तरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति संहिता की किस धारा में दी गयी है ?

A. धारा 402 में ।

◾◾Chapter 31 आपराधिक मामलों का अंतरण

Sec 406 से 412 तक

Question 1. क्या फौजदारी मुकदमें को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में अन्तरिम किया जा सकता है ? अगर किया जा सकता है तो यह कौन कर सकता है ?

A : जी हां , उच्चतम न्यायालय के आदेश के द्वारा फौजदारी मामले को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में अंतरित किया जा सकता है [ धारा 406 ]

Question 2. एक उच्च न्यायालय के अधीन दण्ड न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीन दण्ड न्यायालय को एक आपराधिक मामले को कौन अन्तरित कर सकता हैं ?

A. उच्चतम न्यायालय , भारत के महान्यायवादी या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर , एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दाण्डिक न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दाण्डिक न्यायालय को आपराधिक प्रकरण अंतरित कर सकता हैं ।

[ धारा 406 ]

Question 3. एक सेशन न्यायाधीश अपनी क्षेत्राधिकार के बाहर किसी केस को हस्तांतरित कर सकता है ? यदि नहीं तो कौन कर सकता है ?

A : जी नहीं । इस प्रकार के किसी प्रकरण का अंतरण / हस्तान्तरण उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है ।

[ धारा 407 ]

Question 4. उच्च न्यायालय आपराधिक मामले के अन्तरण की कार्यवाही किसकी प्रेरणा पर करेगा ?

A.

( a ) निचले न्यायालय की रिपोर्ट पर
( b ) हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर , या
( c ) स्वप्रेरणा पर । – धारा 407 ( 2 )

Question 5. अभियुक्त व्यक्ति अन्तरण के आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को लिखित रूप में देगा , आवेदन के गुणावगुण पर कब तक कोई आदेश उच्च न्यायालय द्वारा न दिया जायेगा ?

A. जब तक ऐसी सूचना के दिये जाने और आवेदन की सुनवाई के बीच कब से कम 24 घण्टे न बीत गये हों

  • ( धारा 407 ( 5 )

Question 6. अभियुक्त व्यक्ति अन्तरण के आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को लिखित रूप में देगा , आवेदन के गुणावगुण पर कब तक कोई आदेश उच्च न्यायालय द्वारा न दिया जायेगा ?

A. जब तक ऐसी सूचना के दिये जाने और आवेदन की सुनवाई के बीच कब से कम 24 घण्टे न बीत गये हों

  • धारा 407 ( 5 )

Question 7. यदि मामले या अपील के अन्तरण के लिए आवेदन को उच्च न्यायालय इस आधार पर खारिज कर देता है कि वह तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह क्या आदेश दे सकेगा ?

A. ऐसे में वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार रुपया से अनधिक इतनी राशि , जितनी वह न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था – धारा 407 ( 7 )

Question 8. संहिता की धारा 411 किस बारे में उपबंध करती है ?

A. यह धारा कार्यपालक मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों का अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेटों के हवाले किये जाने या वापस लिये जाने से सम्बन्धित है ।

◾◾Chapter 32 दंड आदेशों का निष्पादन, निलंबन, परिहार और लघुकरण

Sec 413 से 435 तक

Question 1. गर्भवती स्त्री के मृत्युदण्ड के सम्बन्ध में किस न्यायालय को क्या शक्तिया प्राप्त है ?

A : उच्च न्यायालय मृत्युदण्ड के निष्पादन को मुल्तवी करने एवम् इसको आजीवन कारावास में लघुकरण हेतु सशक्त है ।

[ धारा 416 ]

Question 2. क्या एक दोषसिद्ध , जिसने जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने की दशा में नियत कारावास पूरा भोग लिया हैं , से भी उस जुर्माने की राशि को उद्गृहीत किया जा सकेगा ? विधि के प्रावधान का उल्लेख करिये ।

A : न्यायालय वारण्ट जारी करेगा तो उसमें विशेष कारण अभिलिखित किये जायेंगे ; अथवा व्यय / प्रतिकर के संदाय हेतु धारा 357 के अधीन आदेश दिया गया हो ।

[ धारा 421 ( 1 ) ( B ) , परन्तुक ]

Question 3. किसी दण्डादेश के निष्पादन के लिए वारन्ट कौन जारी कर सकता है ?

A : उस न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा , जिसने दण्डादेश पारित किया है , या उसके पद- उत्तरवर्ती द्वारा जारी किया जा सकता है ।

[ धारा 425 ]

Question 4. अभियुक्त के अन्वेषण , जांच या विचारण के दौरान निरोध की अवधि का उसके कारावास से दण्डित होने की दशा में क्या विधिक प्रांसगिकता है ?

A : पुलिस एवम् न्यायिक हिरासत की अवधि का अभियुक्त की सिद्धदोषी पर अधिरोपित कारावास की अवधि में मुजरा किया जायेगा ।

[ धारा 428 ]

Question 5. धारा 433 दण्ड प्रक्रिया संहिता में दण्डादेश का लघुकरण कौन कर सकता है ?

A : समुचित सरकार दण्डादेश का लघुकरण कर सकती है ।

◾◾Chapter 33 जमानत और बंध पत्र के बारे में उपबंध

Sec 436 से 440 तक

Question 1. संहिता की कौन सी धारायें जमानत के बारे में उपबन्ध प्रस्तुत करती है ?

A. धारा 436 से लेकर 439 तक की धारायें ।

Question 2. जब जमानतीय अपराध के किसी व्यक्ति को पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है , या वह न्यायालय के समक्ष लाया या हाजिर होता है और वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में हैं , तो धारा 436 क्या निदेश देती है ?

A.

◾ऐसी स्थिति में उस बीच जब वह अभिरक्षा में है किसी समय या ऐसे न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों के किसी भी प्रक्रम में ,

◾ जमानत देने के लिए तैयार है , तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जायेगा ।

Question 3. अजमानतीय अपराधों में जमानत कब ली जा सकती है |

A :

◾अपराध मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय नहीं होने पर

◾ उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय द्वारा , अजमानतीय अपराधों में जमानत ली जा सकती है ।

[ धारा 437 ]

Question 4. अग्रिम जमानत कौन स्वीकार कर सकता है ?

A : उच्च न्यायालय और सेशन न्यायालय ।

[ धारा 438 ]

Question 5. कौन – सा व्यक्ति किस न्यायालय में अग्रिम जमानत हेतु आवेदन – पत्र प्रस्तुत कर सकता है ?

A :

◾किसी व्यक्ति के यह विश्वास करने का कारण होने पर कि उसे किसी अजमानतीय अपराध के लिये गिरफ्तार किया जा सकता है

◾तो वह उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय में अग्रिम जमानत हेतु आवेदन कर सकता है ।

[ धारा 438 ]

Question 6. अभियुक्त पर किन अपराधों का अभियोग होने की स्थिति में उसे सशर्त जमानत दी जा सकती है ?

( i ) 7 वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध करने का , या

( ii ) भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 6 , अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने का , या

( iii ) उक्त अपराधों में से किसी के दुष्प्रेरण , षड्यन्त्र या प्रयत्न करने का या उसके संदेह का अभियोग होने की स्थिति में ।

Sec 437 ( 3 )

Question 7. जमानत के विषय में उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की विशेष शक्तियाँ संहिता की किस धारा में व्यवस्थित हैं ?

A. धारा 439 में ।

◾◾Chapter 33 जमानत और बंध पत्र के बारे में उपबंध

Sec 441 से 450 तक

Question 1. जब अभियुक्त द्वारा बन्धपत्र निष्पादित कर दिया जाता है तो उसे अभिरक्षा से उन्मोचित कर दिये जाने की प्रक्रिया किस धारा में उपवर्णित है ?

A. धारा 442 में

Question 2. यदि भूल या कपट के कारण अपर्याप्त प्रतिभू स्वीकार किये गये हैं अथवा यदि वे बाद में अपर्याप्त हो जाते हैं , तो न्यायालय क्या कर कता है ?

A. ऐसे में न्यायालय यह निर्देश देते हुए गिरफ्तारी का वारंट जारी कर सकता है कि जमानत पर छोड़े गये व्यक्ति को उसके समक्ष लाया जाय और वह पर्याप्त प्रतिभूति दे ।

( धारा 443 )

Question 3. पर्याप्त प्रतिभूति देने में असफल रहने पर न्यायालय क्या कर सकता है ?

A. अभियुक्त को जेल के सुपुर्द कर सकता है ।

( धारा 443 ) ।

Question 4. प्रतिभुओं के उन्मोचन से संबंधित धारा कौन – सी है ?

A. धारा 444

Question 5. कोई न्यायालय या उपयुक्त अधिकारी बन्धपत्र के निष्पादन के बदले में किसी रकम के सरकारी वचन – पत्र को निक्षिप्त करने की अनुज्ञा दे सकता है , यह नियम किस बन्धपत्र को नहीं होती है ?

A. सदाचार के लिए बन्धपत्र को । ( धारा 445 ) ।

Question 6. यदि शास्ति न देने के लिए पर्याप्त कारण दर्शित नहीं किया जाता है और शास्ति नहीं दी जाती है , तो न्यायालय क्या कर सकेगा ?

A. ऐसे में न्यायालय शास्ति की वसूली जुर्माना के रूप में कर सकता है ।

( धारा 446 ( 2 )

Question 7. शास्ति का भुगतान न किये जाने पर उसके प्रतिभू के रूप में आबद्ध व्यक्ति को शास्ति की वसूली का आदेश देने वाला न्यायालय क्या आदेश दे सकेगा ?

A. ऐसे प्रतिभू के लिए ऐसा न्यायालय आदेश दे सकता है कि वह सिविल कारगार में 6 मास तक की अवधि के लिए कारावासित किया जाय ।

( धारा 446 ( 2 )

Question 8. यदि कोई न्यायालय किसी अवयस्क से बन्धपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा करता है तो उसके बदले किसका बन्धपत्र स्वीकार कर सकता है ?

A. ऐसा न्यायालय उसके बदले केवल प्रतिभू या प्रतिभुओं द्वारा निष्पादित बन्धपत्र स्वीकार कर सकता है ।

( धारा 448 )

Question 9. मुचलकों पर देय धनराशि को वसूल करने की आदेश देने की शक्ति किसे है ?

A. उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को ।

( धारा 450 )

◾◾Chapter 34 संपत्ति का व्ययन

Sec 451 से 459 तक

Question 1. किसी दाण्डिक प्रकरण में तीन सौ पचास बोरी प्याज जब्त किये गये थे । प्रकरण का शीघ्र निर्णय होना सम्भव नहीं है तो ऐसे जब्तसुदा प्याज का निस्तारण किस प्रकार से किया जायेगा ?

A. प्याज , शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील होने से न्यायालय विक्रय या उसका अन्यथा व्ययन हेतु आदेश दे सकता हैं । [ धारा 451 ]

Question 2. किसी सम्मति के कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले व्यक्ति को उस सम्पत्ति का परिदान न्यायालय कैसे आदेश के द्वारा कर सकता है ?

A. ऐसे परिदान का आदेश किसी शर्त के बिना या इस शर्त के साथ लिया जा सकता है कि वह प्रतिभुओं रहित या सहित बंधपत्र निष्पादित करे कि यदि उस सम्पत्ति के परिदान का आदेश अपील या पुनरीक्षण में उपांतरित या अपास्त कर दिया गया , तो वह उस सम्पत्ति को न्यायालय में लौटा देगा ।

[ धारा 452 ( 2 ) ]

Question 3. धारा 452 ( 1 ) के अधीन सम्पत्ति के संबंध में न्यायालय द्वारा किया गया आदेश कब कार्यान्वित किया जा सकेगा ?

A. 2 माह की अवधि व्यतीत हो जाने के पश्चात् , अथवा जहां अपील उपस्थित की गयी है वहां जब तक उस अपील का निपटारा न हो जाय , किन्तु यह अवधि शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील सम्पत्ति के संबंध में लागू नहीं होगी ।

[ धारा 452 ( 4 ) ]

Question 4. स्थावर सम्पत्ति का कब्जा लौटाने के संबंध में न्यायालय कब अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है ?

A.

( i ) जब , न्यायालय द्वारा किसी को अपराधिक बल या बल प्रदर्शन या आपराधिक अभित्रास से युक्त किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाय और

( ii ) न्यायालय को यह प्रतीत हो कि ऐसे बल या बल प्रदर्शन या अभिनास से कोई व्यक्ति किसी स्थावर सम्पत्ति से बेकब्जा किया गया है ।

[ धारा 456 ( 1 ) का परन्तुक ]

Question 5. सम्पत्ति से बेकब्जा किये गये व्यक्ति को , कब्जा लौटाने का अभियुक्त को आदेश , दोषसिद्धि के पश्चात् कब तक दिया जा सकेगा ?

A. दोषसिद्धि के 1 मास के अंदर तक ही ।

[ धारा 456 ]

Question 6. संहिता की कौन – सी धारा पुलिस अधिकारी द्वारा अभिग्रहण की । गयी सम्पत्ति के लिए प्रक्रिया प्रस्तुत करती है ?

A. धारा 457

Question 7. यदि 6 मास के अंदर कोई व्यक्ति सम्पत्ति पर अपना दावा सिद्ध नहीं करता , और सम्पत्ति , जिस व्यक्ति के कब्जे में पायी गयी थी , वह उसे अपने वैध रूप से अर्जन को सिद्ध नहीं कर पाता , तो मजिस्ट्रेट क्या आदेश दे सकता है ?

A. यह आदेश दे सकता है कि ऐसी सम्पत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन होगी तथा उस सरकार द्वारा विक्रय की जा सकेगी ।

[ धारा 458 ]

Question 8. मजिस्ट्रेट किसी विनश्वर प्रकृति की सम्पत्ति को बेचने का आदेश कब दे सकता है ?

A. जब

( a ) सम्पत्ति पर कब्जे का हकदार व्यक्ति अज्ञात या अनुपस्थित है और सम्पत्ति शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है ,

( b ) अथवा उस मजिस्ट्रेट की , जिसे उसके अभिग्रहण की रिपोर्ट की गयी है , यह राय है कि उसका विक्रय स्वामी के फायदे के लिए होगा , अथवा

( c ) ऐसी सम्पत्ति का मूल्य 500 रुपये से कम है ।

[ धारा 459 ]

◾◾Chapter 35 अनियमित कार्यवाहियाँ

Sec 460 से 466 तक

Question 1. संहिता के किस अध्याय एवं धाराओं में अनियमित कार्यवाहियों के संबंध में उपबन्ध किया गया है ?

A. अध्याय 35 की ( धारा 460 से लेकर 466 तक में ) ।

Question 2. गलत स्थान पर की गयी दाण्डिक कार्यवाही का क्या विधिक प्रभाव पड़ता है ?

A. वस्तुतः न्याय का हनन होने पर ही ऐसी कार्यवाही को अपास्त किया जा सकता है ।

[ धारा 462 ]

Question 3. ऐसी कौनसी अनियमितताएं है जो कार्यवाही को दूषित नहीं करती है ?

A : यदि कोई मजिस्ट्रेट , जो निम्नलिखित बातों में से किसी को करने के लिए विधि द्वारा सशक्त नहीं है , गलती से सद्भावपूर्वक उस बात को करता है तो उसकी कार्यवाही को केवल इस आधार पर कि वह ऐसे सशक्त नहीं था , अपास्त नहीं किया जाएगा , अर्थात्

( a ) धारा 94 के अधीन तलाशी – वारंट जारी करना ;

( b ) किसी अपराध का अन्वेषण करने के लिए पुलिस को धारा 155 के अधीन आदेश देना ;

( c ) धारा 176 के अधीन मृत्यु- समीक्षा करना ;

( d ) अपनी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर के उस व्यक्ति को जिसने ऐसी अधिकारिता की सीमाओं के बाहर अपराध किया है , पकड़ने के लिए धारा 187 के अधीन आदेशिका जारी करना ;

( e ) किसी अपराध का धारा 190 की उप – धारा ( 1 ) के खण्ड ( a ) या खण्ड ( b ) के अधीन संज्ञान करना ;

( f ) किसी मामले को धारा 192 की उप – धारा ( 2 ) के अधीन हवाले करना ;

( g ) धारा 306 के अधीन क्षमादान करना ;

( h ) धारा 410 के अधीन मामले को वापस मँगाना और उसका स्वयं विचारण करना अथवा

( i ) धारा 458 या धारा 459 के अधीन सम्पत्ति का विक्रय ।

[ धारा 460 ]

Question 4. ऐसी कौन – सी अनियमितताएं है जो कार्यवाही को दूषित करती है ?

A : यदि कोई मजिस्ट्रेट , जो निम्नलिखित बातों में से कोई बात विधि द्वारा इस निमित्त सशक्त न होते हुए , करता है तो उसकी कार्यवाही शून्य होगी , अर्थात् :

( a ) सम्पत्ति को धारा 83 के अधीन कुर्क करना और उसका विक्रय

( b ) किसी डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी दस्तावेज पार्सल या अन्य चीज के लिए तलाशी – वारण्ट जारी करना

( c ) परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति की माँग करना

( d ) सदाचार के लिए प्रतिभूति की माँग करना :

( e ) सदाचारी बने रहने के लिए विधिपूर्वक आबद्ध व्यक्ति को उन्मोचित करना

( f ) परिशान्ति कायम रखने के बन्धपत्र को रद्द करना

( g ) भरण – पोषण के लिए आदेश देना ;

( h ) स्थानीय न्यूसेन्स के बारे में धारा 133 के अधीन आदेश देना ;

( i ) लोक न्यूसेन्स की पुनरावृत्ति या उसे चालू रखने की धारा 143 के अधीन प्रतिषेध करना ;

( j ) अध्याय 10 के भाग ग या भाग घ के अधीन आदेश देना ;

( k ) किसी अपराध का धारा 190 की उपधारा ( 1 ) के खण्ड ( c ) के अधीन संज्ञान करना

( l ) किसी अपराध का विचारण करना

( m ) किसी अपराधी का संक्षेपतः विचारण करना

( n ) किसी अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित कार्यवाही पर धारा 325 के अधीन दण्डादेश पारित करना ;

( o ) अपील को विनिश्चय करना ;

( p ) कार्यवाही को धारा 397 के अधीन मँगाना अथवा

( q ) धारा 446 के अधीन पारित आदेश का पुनरीक्षण करना ।

[ धारा 461 ]

◾◾Chapter 36 कुछ अपराधों का संज्ञान करने के लिए परिसीमा

Sec 467 से 473 तक

Question 1. परिसीमा – काल का आरम्भ कब होता है ?

A : अपराध की तारीख या अपराध की जानकारी की तारीख अथवा अपराधी का प्रथमतः पता लगने की तारीख से परिसीमा – काल का आरम्भ होता है ।

[ धारा 469 ]

Question 2. जिस तारीख पर न्यायालय बंद है और उसी दिन परिसीमा काल समाप्त होता है । ऐसी स्थिति में , क्या उस तारीख को विधितः अपवर्जन किया जा सकता है ?

A : जिस तारीख पर न्यायालय बंद है , उस दिवस का समयावधि में अपवर्जन ( exclusion ) किया जायेगा ।

[ धारा 471 ]

Question 3. क्या न्यायालय परिसीमाकाल समाप्त होने के बाद भी किसी अपराध का प्रंसज्ञान ले सकता है ? यदि हां तो किन परिस्थतियों में ?

A : जी हां , यदि विलम्ब का उचित रूप से स्पष्टीकरण कर दिया गया है या न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है ।

[ धारा 473 ]

Question 4. संज्ञान लेने के लिये परिसीमा काल की अवधि कितनी है ?

A : परिसीमा काल

( a ) छः मास होगी , यदि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय है ,

( b ) एक वर्ष होगा , यदि अपराध एक वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय है ;

( c ) तीन वर्ष होगा , यदि अपराध एक वर्ष से अधिक किन्तु तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय है ।

◾जिन एक से अधिक अपराधों का एक साथ विचारण किया जा सकता है , परिसीमा काल उस अपराध से अवधारित ( determined ) किया जायेगा जो , यथास्थिति , कठोरतर या कठोरतम दण्ड से दण्डनीय है ।

[ धारा 468 ]

◾◾Chapter 37 प्रकीर्ण

Sec 474 से 484 तक

Question 1. कोई उच्च न्यायालय यदि किसी अपराध का विचारण करता है । तो वह कौन – सी प्रक्रिया अपनायेगा ?

A. वैसी ही प्रक्रिया अपनायेगा , जिसको सेशन न्यायालय अपनाता , यदि उसके द्वारा उस मामले का विचारण किया जाता ।

( धारा 474 )

Question 2. सेना न्यायालयों द्वारा विचारणीय व्यक्तियों को किसे सौंपे जाने का उपबंध संहिता की धारा 475 किया गया है ?

A. कमान ऑफिसरों को ।

Question 3. सेना न्यायालय द्वारा विचारणीय अपराध के अभियुक्त को पकड़ने और सुरक्षित रखने के लिए प्रत्येक मजिस्ट्रेट अधिकतम प्रयास कब करेगा ?

A. जब उसे किसी स्थान में नियोजित या आस्थित सैनिकों , नाविकों या वायु सैनिकों के किसी यूनिट या निकाय के कमान ऑफिसर से उस प्रयोजन केलिए लिखित आवेदन प्राप्त होता है ।

( धारा 475 ( 2 )

Question 4. दण्ड प्रक्रियासंहिता के अंतर्गत किस धारा में उच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्ति उपबंधित है ?

A. धारा 477 में

Question 5. कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट , जिसमें वह पक्षकार है या वैयक्तिक रूप से हितबद्ध है कब ऐसे मामले का विचारण करेगा या विचारणार्थ सुपुर्द करेगा ?

A. उस न्यायालय की अनुज्ञा से जिसमें ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट के निर्णय से अपील होती है ।

( धारा 479 )

Question 6. दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 480 में क्या उपबन्ध किया गया है ?

A. इस धारा के अनुसार कोई प्लीडर , जो किसी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में विधि व्यवसाय करता है , उस न्यायालय में या उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी न्यायालय में मजिस्ट्रेट के तौर पर न बैठेगा ।

Question 7. उच्च न्यायालय अपनी अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग किन उद्देश्यों के लिए कर सकता है ?

A.

( i ) इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिए , या

( ii ) किसी न्यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग निवारित करने के लिए या

( iii ) किसी अन्य प्रकार से न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए

( धारा 482 )

Question 8. संहिता की अंतिम धारा कौन – सी है और उसमें क्या उपबन्ध प्रस्तुत किया गया है ?

A. अंतिम धारा 484 है इसमें निरसन तथा व्यावृत्तियों का उपबन्ध किया गया है ।

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