▶Evidence Act 1872 न्यायालयों के निर्णय कब सुसंगत हैं ? (धारा 40 – 44 )

साधारण नियम – वे संव्यवहार जो विवादित तथ्यों से सम्बन्धित नही होते है , सुसंगति के साधारण नियमों के अंतर्गत ग्राह्य नही होते है ।
👉 लेकिन न्यायालय के निर्णय इसके अपवाद है अर्थात न्यायालयों के निर्णय सुसंगत होते है ।
जैसे – धारा 40 के अंतर्गत ऐसे निर्णय तब सुसंगत होते है जब वे दूसरे वाद या विचारण को बाधित करते है ।
👉 जब न्यायालय के सामने यह प्रश्न उठे तो न्यायालय को यह ध्यान रखना चाहिए कि क्या इस विषय पर पहले निर्णय हो चुका है । यदि किसी सक्षम न्यायालय द्वारा इस विषय पर पहले निर्णय हो चुका हो तब नया विचारण रोकने के लिए पूर्ववर्ती निर्णय सुसंगत है ।
👉 यह सिद्धांत लोकनीति पर आधारित है कि किसी व्यक्ति को एक ही वाद कारण के लिए बार – बार परेशान न किया जाये तथा न्यायालय के निर्णयों को अन्तिमता प्राप्त हो अथवा एक ही कारण पर किसी व्यक्ति को बार – बार परेशान न किया जाये ।
जैसे -इस सम्बन्ध में विभिन्न स्थितियां है जहाँ न्यायालयों के निर्णय सुसंगत होते है ।
जैसे –
( 1 ) – प्रांग्न्याय ( Res judicata ) –
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 11 के अंतर्गत प्रग्न्याय का सिद्धांत दिया गया है कि यदि किसी सिविल न्यायालय द्वारा न्यायालय की कोई डिक्री या आदेश पारित हो चुके है तो उसी विषय पर दूसरे वाद पर पूर्ववर्ती निर्णय , एक रोक के रूप में होता है । यदि वह निर्णय उन्ही पक्षकारों के बीच हो या उनके हित प्रतिनिधियों के बीच में हो ।
( 2 ) – सारतः दोनों ही वादों में विषय एक ही हो ।
( 3 ) – पूर्ववर्ती वाद उसी हक़ के लिए रहा हो , जिस हक़ के लिए पश्चातवर्ती वाद किया गया है ।
( 4 ) – पूर्ववर्ती न्यायालय निर्णय करने के लिए सक्षम हो ।
( 5 ) – पश्चातवर्ती वाद में प्रत्यक्षतः विवादित विषय या प्रश्न को पूर्ववर्ती न्यायालय द्वारा सुनवाई करके विनिश्चित किया गया हो ।
👉 उदाहरण के लिए –
A , B के विरुद्ध मकान के कब्जे का दावा करता है । दोनों ही अपने न्यायालय B के पक्ष में निर्णय कर देती है । इसके 5 वर्ष के बाद A पुनः दावा करता है और B यह तर्क लेता है कि इस विषय पर पहले ही निर्णय हो चुका है | B का तर्क सुसंगत है और पूर्ववर्ती निर्णय प्रांग्न्याय में वादकारण के रूप में लागू होगा ।
👉 आपराधिक मामलों में भी यही सिद्धांत धारा 300 , दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत लागु है कि जब किसी सक्षम न्यायालय द्वारा किसी की दोषसिद्धि या दोषमुक्ति की जा चुकी है तो उसी अपराध के लिए दुबारा विचारण नही होगा |
👉 संविधान के अनुच्छेद 20 ( 2 ) के अंतर्गत पुनःदोषसिद्धि पर रोक लगाई गयी है अर्थात यदि एक बार न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध किया जा चुका है तो दुबारा उसी विषय पर सुनवाई पर रोक होगी |
👉 लेकिन जिस व्यक्ति को केवल उन्मोचित किया गया हो उसकी सुनवाई दुबारा हो सकेगी ।
👉 इसके अतिरिक्त सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 10 के अंतर्गत विचाराधीन वाद का सिद्धांत दिया गया है कि जब कोई वाद विचाराधीन है और सक्षम न्यायालय में सुनवाई हो रही है तो उसी विषय पर किसी दूसरे न्यायालय में सुनवाई नही हो सकेगी ।
👉 इसके अलावा आदेश 2 नियम 2 , आदेश 22 नियम 9 , आदेश 23 नियम 1 , आदेश 9 नियम 9 के अंतर्गत यह सिद्धांत लागू होता है ।
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